वृद्धावस्था में यदि जिद पर अड़ जाएं माता पिता तो करें उनका सम्मान

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अकेलेपन से अवसाद, व्याकुलता, तनाव का हो रहे है वृद्धजन शिकार, उनका दे साथ और सौपें उन्हे छोटी-छोटी जिम्मेवारियां

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*राजेश मिश्रा*

विशेष। लगातार ऐसा देखा जा रहा है क़ी वृद्धावस्था में माता पिता चिड़चिड़े से हो जाते हैं। यानी सीधी शब्दों में कहें तो उनका व्यवहार घर के बच्चों जैसा हो जाता है। मामूली सी बात पर गुस्सा करना एक ही बात पर अडिग रहना उनकी आदत बन जाती है। जिसका सबसे प्रमुख कारण है अकेलापन। अकेलेपन से अवसाद, तनाव, व्याकुलता और आत्मविश्वास में कमी जैसी मानसिक समस्याएं होती हैं।

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ये समस्याएं केवल उन तक ही सीमित नहीं रहती हैं, बल्कि उनकी देखरेख करने वालों को भी उतना ही प्रभावित करती हैं। बढ़ती उम्र के साथ चलने-फिरने, देखने-सुनने और याददाश्त कम होने की समस्या आम बात है। यह सब किसी भी व्यक्ति के लिए पीड़ा का कारण बन सकता हैं।माता पिता की उम्र बढ़ रही है और वें शारीरिक रूप से कमजोर हो रहे है।ऐसी स्थिति में जब उन्हें लगता है कि उनके मन की बात नही हो रही है तो उनके अंदर की यह भावना क्रोध और गुस्से के रूप में बाहर आती हैं।

उन्हें लगता है पूरी उम्र कमाने के बाद जिस बेटे को पढ़ा लिखा के ऊंचे मुकाम तक पहुंचाया उसे दो वक्त मेरे पास बैठने का समय नहीं। उनकी सोचना लाजिमी है। आजकल तो अधिकतर देखा जा रहा है कि उनके लिए किसी के पास समय नहीं। ऐसी स्थिति में वे घर के छोटे छोटे बच्चो के साथ अपना मन बहलाते हैं।लेकिन उन्हें भी इस बात की इच्छा रहती है कि उनका पुत्र उनकी बहू उनके साथ समय गुजारे।

परंतु हम अपनी व्यस्तता का रोना रोते हैं। जबकि जमीनी हकीकत यह है कि उनके पास बैठने से न सिर्फ हमेशा ज्ञानवर्धक बातें सीखने को मिलती है बल्कि वे ऐसी अवस्था में ज्यादा स्वस्थ रहते है और उनके चेहरे पर प्रसन्नता का भाव दिखता है। इसे नजर अंदाज न करें। आपकी समझदारी से वे हमेशा खुश रहेंगे।

यदि वे स्वस्थ हैं  और खुश हैं तो घर का माहौल भी खुशियों से भरा होगा। उन्हे छोटी छोटी जिम्मेवारियां भी दे। जैसे बच्चों को स्कूल पहुंचाने में मदद करना, इवनिंग वॉक पर ले जाना, व्यायाम करने के लिए प्रेरित करना, किसी भी कार्य करने से पहले उनसे राय सलाह लेना आदि शामिल हैं। कोशिश करें कि मां पिता को धार्मिक स्थलों का भ्रमण कराएं।

हमेशा आपका व्यवहार उनके प्रति आदर और सत्कार वाले होने चाहिए।क्योंकि उस उम्र में उनकी भावना ही ऐसी हो जाती है।इसलिए आप ऐसी बातें हरगिज़ ना करें जिससे उन्हें किसी प्रकार की ठेस पहुंचे। अपने पुत्र धर्म का पालन ईमानदारी पूर्वक करें इसी में हम सबकी भलाई है।

नोट – सामाजिक परिपेक्ष पर लिखी गई यह खबर आमजनो तक जरूर पहुंचाएं।

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