आमस से ऐहसान अली
आमस- शब-ए-बरात की रात एक ऐसी रात होती है जिसमे मुस्लिम समुदाय के लोग क्षमा के रूप में मनाते हैं और पूरी रात दुआ करते हैं और अल्लाह से आशीर्वाद पाने की कामना करते हैं।
इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग अपने पूर्वजो की कब्रो पर जाते हैं और फातेहा और दुआ करते हैं कि उन्हें जन्नत नसीब करे।इस्लामी कलेंडर के मुताबिक शब-ए- बरात शाबान महीने की 15वीं तारीख की रात को मनाया जाता है।यह दीन-ए-इस्लाम का आठवां महीना होता है।
इसे माह-ए-शाबान यानी मुबारक महीने माना जाता है।जो शब-ए-बरात में इबादत करता है, उनके सारे गुनाह माफ हो जाते हैं, इसलिए लोग शब-ए-बरात में रातभर जागकर इबादत करते हैं और अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं।शब-ए-बरात के मौके पर मस्जिद और कब्रिस्तानो को खास तरीके से सजाया जाता है कब्रो पर चिराग जलाकर मगफिरत की दुआएँ मांगी जाती है।
लोग मस्जिद और कब्रिस्तान में जाकर अपने पूर्वजो के लिए खुदा से इबादत करते हैं।इसे चार मुकद्दस रातों में से एक मानते हैं, जिसमें पहला आशूरा की रात,दूसरी शब-ए-मेराज,तीसरा शब-ए-बरात और चौथा शब-ए-कद्र की रात होती है।
इसके अलावा घरों और मस्जिदों में नमाज़ पढ़ कर अल्लाह से गुनाहों की माफी मांगते हैं।आमस के हमज़ापुर स्थित हजरत कमर अली सुल्तान की मजार पर अकीदतमंद जाकर फातेहा व दुआ मांगते हैं।