संघर्ष, एक लघुकथा

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ज्ञानेंद्र मोहन खरे

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रविवार का दिन था। राहुल अलसाया सा बिस्तर में पड़ा था। मोबाइल में समय देखा तो 8 बज चुके थे। 9 बजे उसे ऑफिस जाना था। हड़बड़ी में उठा तो राजू भी उठ गया। गुसलखाने की तरफ़ जाते उसे दाहिने घुटने में दर्द महसूस हुआ और वो लड़खड़ा के गिर गया। नन्हा राजू उसे उठाने का प्रयास कर रहा था और मदद के लिए गुहार कर रहा था। आवाज़ सुन उसकी दीदी ऋतु भी आ गई। किसी तरह से राहुल खड़ा हुआ पर उसके दाहिने पैर में शरीर का वजन डालने में असीम पीड़ा हो रही थी। उसका मन आशंकित था।

राहुल एक प्रतिष्ठित निजी संस्था में तकनीकी प्रमुख था। जब स्थिति में सुधार नहीं हुआ तो राहुल ने उपचार के लिए समीपवर्ती शहर में जाने का निर्णय लिया। चिकित्सक ने एक्सरे किया पर कोई फ्रैक्चर नहीं था फिर भी एहतियातन पैर में 15 दिनों के लिए प्लास्टर लग गया। संस्था द्वारा आबंटित निवास प्रथम तल पर था। किसी तरह से लंगड़ी कर राहुल ने 15 सीढ़ियाँ चढ़ी। जीवन उतार चढ़ाव से भरपूर है और हरेक परेशानी के बादआती है सहूलियत ।

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प्लास्टर खुला और राहुल की ज़िंदगी चल पड़ी। पर समस्या का मूल कारण पता नहीं चला था। और यही राहुल के लिये तनाव का कारण था। जिसका डर था वही हुआ एक दिन फिर राहुल का दाहिना पैर लॉक हो गया और राहुल सीधा तन कर नहीं चल पड़ा। मुश्किल से धर्मपत्नी के कंधे का सहारा ले बिस्तर तक पहुँचा। राहुल गहन निराशा की आग़ोश में था और अब बैसाखी ही सहारा था।

राजधानी में कई नामी हड्डी रोग विशेषज्ञ और अस्पताल थे। राहुल ने तैयारी की और सहपरिवार राजधानी की ओर रूखसत किया। मेयो अस्पताल के चिकित्सकों ने एक्सरे कराया पर मूल कारण का पता नहीं चला। डॉक्टर श्रीवास्तव ने एमआरआई कराई तो घुटने के मीडियल मिनीसकैस में चोट दिखाई दी। डॉक्टर ने ऑपरेशन कर कॉर्ड बदलने की सलाह दी। उसने बताया कि ऑपरेशन बाद में भी संभव है। उन्होंने राहुल को पैर की स्थिति समझाई जिससे घुटने की कटोरी का अटकना ठीक हो जाता था और बग़ैर बैसाखी के चला जा सकता था।

राहुल की ज़िंदगी अब असुरक्षित और अनिश्चित हो गयी थी। उसके कभी भी लाचार होने का डर था। इसलिए राहुल ने ऑपरेशन कराने का निर्णय लिया। महज़ 43 वर्ष की उम्र में अचानक आयी त्रासदी से राहुल और परिवार के सभी लोग क्षुब्ध और स्तब्ध थे। पर नियति को शायद यही मंज़ूर था। ऑपरेशन सफल हुआ और। शुरुवात हुई राहुल के संघर्ष की।

बैसाखी हर पल लाचारी और अपंगता का एहसास करा रही थी। ऋतु और राजू सकते में थे ।दोनों के चेहरे पर चिंता नज़र आती। मानों बचपन में ही ज़िम्मेदारी का निर्वहन करना पड़ रहा हो। बच्चों की स्थिति देख राहुल अत्यंत पीड़ा में था। शाश्वत है स्वयं का कष्ट ख़ुद को सहना पड़ता है। राहुल हर पाल गहन चिंतन करता कि ऐसा कौन सा कुकृत्य हुआ उससे जो ये दिन देखने पड़ रहे। जानकार तो उसने कोई ग़लत कार्य नहीं किया था।

शायद प्रारब्ध के कर्मों का हिसाब अब भी बचा था। जीवन की नैया बीच भँवर में थी। धर्मपत्नी जी जान से सेवा में जुटी थी। वह राहुल का कार्य भी कर रही थी। अब सभी को भगवान का आसरा था। राहुल ने हिम्मत कि और अपनी नित्य क्रिया नियत स्थान पर जारी रखी। स्कूल जाने से पहले और स्कूल से आने के बाद दोनों बच्चे राहुल के इर्द गिर्द रहते। दोनों ने स्वतः शाम में खेलने जाना बंद कर दिया था। जीवन में संघर्ष चरम पर था।

जीवन में ऐसे पल आते है जब इंसान ईश्वर की कृपा और अपनों की दुआ पर निर्भर हो जाता है। लंगड़ी चलने से कभी लगता कि दाहिना पैर ठीक होते होते बाँयाँ पैर ख़राब हो जाएगा। डॉक्टर ने पैर में वजन बांध घुटने पर ज़ोर दे उठाने को कहा। राहुल के पास ट्रैक्शन की ना तो सुविधा थी ना ही कसरत करने के उपकरण ख़रीदने के लिए पैसे थे। श्रीमती जी पैर में निरमा पाउडर के एक किलो के पैकेट को बांध कसरत करती। ऋतु अपनी साइकिल में उल्टी पैडलिंग कर कसरत कराती। राजू राहुल के पैर बिस्तर से नीचे ऊपर करता और बैसाखी लाता और काम होने पर रखता।

राहुल की मनोस्थिति अच्छी नहीं थी। शारीरिक लाचारी तो दुखदायक थी साथ ही बॉस का नकारात्मक रवैया परेशानी का सबब था। राहुल ने बड़ी जद्दोजहद के बाद प्रबंधन से घर से कार्य करने की अनुमति प्राप्त की। ऋतु ने बैठक कक्ष को ऑफिस में तब्दील कर लिया था। बग़ैर वेतन की छुट्टी से बचने का यही तरीक़ा बचा था। घर छोटा था पर परिवार के साथ ने इसका अहसास नहीं होने दिया। मुश्किल हालातों ने घर के सभी सदस्य उम्र से कही ज़्यादा समझदार बना दिया था।

दुश्वारियों का दौर ख़त्म हुआ और राहुल के पैर की पट्टी खुल गयी। डॉक्टर ने चलने की अनुमति दी। सहमे राहुल ने धीरे धीरे दाहिने पैर को सीधा किया और तन कर खड़ा हो गया। फिर थोड़ा लड़खड़ाते हुए मुख्य द्वार की तरफ़ आगे बढ़ा। सभी की आँखें नम थी। राहुल धीरे धीरे सीधी उतर कर मंदिर की तरफ़ अग्रसर था। जीवन में मुश्किलें आती है पर इंसान का जज्बा और हौंसला उसे जुझारू बनाता है। अपनों का साथ और ईश्वर पर आस्था – विश्वास जीने की आस जगाता है।

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