एक थे गरदा बाबा – लघुकथा

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ज्ञानेंद्र मोहन खरे

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लघुकथा। गरदा बाबा के नाम से ज़ेहन में एक अधेड़ उम्र के नाटे गठीले क़द काठी के वयस्क की आकृति अवतरित होती है जिसका मुँह हमेशा रजनीगंधा से पैक रहता है और सिर पर बिखरी अधपकी ज़ुल्फ़ें जो कंघी से कोसों दूर थी। वैसे तो गरदा बाबा का नाम गिरधारी लाल था और वे उत्तरी चम्पारण के मूल निवासी थे। तेज गाड़ी चलाना और धूल गरदा उड़ाना गिरधारी की शान थी। शायद इसीलिए बच्चे उन्हें गरदा अंकल और बड़े गरदा बाबा बुलाते थे। बड़बोलापन गरदा की ख़ासियत थी।

बात बात में बच्चों पर रौब झाड़ना और सभी से अपने अजूबे कारनामों का बखान करने में गरदा को बहुत आनंद आता था। पेशे से ड्राइवर गरदा किराए पर स्कॉर्पियो चलाते थे। विगत कई वर्षों से गरदा औरंगाबाद की सेवा कर रहे थे। उनके किससे बेमिसाल थे मसलन बच्चों को स्कूल छोड़ते वक्त उन्हें आँख बंद कर बैठने के लिए बोलना। गरदा अपने इस कार्य को बच्चों को तेज गति के डर से बचाने की पहल बताते।

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कई अभिभावक गरदा को सिरफिरा समझते और अपनें बच्चों को सुरक्षा की दृष्टि से गरदा के साथ नहीं भेजते। पर जिस किसी को शख़्स को कम समय में यात्रा करनी होती वो गरदा को याद करता। शासकीय, अर्धशासकीय या निजी क्षेत्र में कार्य करने वाला हर शख़्स चाहे आम हो या ख़ास गरदा से मुत्तसिर था।

राहुल एक निजी संस्थान में उच्च पद पर आसीन था। उसे आवश्यक कार्य से दिल्ली जाना था। विमान की उड़ान वाराणसी से शाम के ७ बजे थी। औरंगाबाद से पांच घंटे में विमानतल पहुँचना निहायत जटिल कार्य था। जब कार्मिक अधिकारी की सलाह ली तो उसने गरदा का नाम सुझा दिया। उन्होंने बताया कि घंटों की यात्रा मिनिटों में करानें में गरदा की महारत है। गरदा आत्मविश्वास से ओतप्रोत है। उसका गाड़ी चालन तेज है पर ख़तरों से भरपूर।

राहुल चिंतित था पर हालतों के आगे मजबूर भी। अंततः उसने गरदा के नाम पर सहमति जतायी। उस दिन गरदा की टशन भरी शख़्सियत से राहुल रूबरू हुआ। रास्ते भर गरदा अपनी सलाहियतों का बखान करता रहा और उसका रक्तचाप बढ़ता रहा। अंतोगत्वा राहुल पीछे की सीट से उतर आगे परिचालक की सीट पर बैठ गया ताकि गरदा सामने देख गाड़ी चलाता रहे और किसी को टक्कर ना मारे। गरदा ने वायदे अनुसार ठीक 4 घंटे में वाराणसी विमान तल पहुँचा दिया। राहुल ने इत्मीनान की साँस ली और परम् पिता को धन्यवाद दिया। विमानतल के अंदर जाने से पहले उसने गरदा को आराम से वापस जाने की ताकीद दी। गरदा ने बेमन से सिर हिलाया और चल पड़ा।

दो दिन बाद राहुल वापस आया तो मालूम चला कि गरदा बाबा सदर अस्पताल में भर्ती है। उस दिन वापिस लौटते वक्त गाड़ी अनियंत्रित हो सोन नदी में गिर गयी थी। पानी में गिरने से गरदा की जान तो बच गये पर शरीर में और ख़ासकर पैरों में गंभीर चोटें आयीं थी। चिकित्सक ने उन्हें कम से कम एक वर्ष तक गाड़ी ना चलाने की हिदायत दी। राहुल को इस हादसे पर अफ़सोस और दुख था।

कार्य की व्यस्तता में कब छह माह गुजर गये पता नहीं चला। सुरक्षा विभाग ने इत्तला दी कि ट्राई साइकिल पर कोई गिरधारी नाम का व्यक्ति आपसे मिलने आया है। मेरे दिमाग़ में गरदा के साथ वाराणसी दौरे का सारा वाकया चलचित्र की तरह दिखाई पड़ने लगा।

नमस्ते सर की आवाज़ ने मुझें मानों नींद से जगा दिया।
सामने गरदा बैसाखियों पर था पर चेहरे पर वही जोश खरोश और अकड़ थी। कैसे हो गरदा — मैंने पूछा, अच्छा हूँ। आपको उस दिन विमान मिल गया था ना? – उसने उत्सुकता से पूछा। मैंने हामी में सिर हिलाया। अभी क्या कर रहे हो..मैंने पूछा, बस सर ठीक होने का इंतज़ार ताकि फिर आपकी सेवा में हाज़िर हो संकूँ। वह आत्मविश्वास से लबरेज़ था। मुझे समय पर पहुँचाने की ख़ुशी और सुकून उसके चेहरे पर साफ़ नज़र आ रहा था।

मैंने उसे पैसे देने चाहे पर उसने इंकार किया और मुझसे वादा लिया कि आपातकालीन स्थिति में उसे ही सेवा का अवसर दिया जायगा।
आज गरदा बाबा के जुनून और जज्बे को सलाम करने की इच्छा हो रही थी।

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