शेरघाटी से शमशीर
क़ादरिया वारसिया एजुकेशनल ट्रस्ट के संस्थापक वारिस अली खान ने बिहार समेत देश विदेश में रह रहे मुसलमानों को रमज़ान की मुबारकबाद देते हुए कहा कि रमज़ान इस्लामी कलेंडर का 9वां महीना है जिसमें पूरे माह अल्लाह की इबादत की जाती है।
ये वो महीना है जिसमें इंसान झूट, फरेब, मक्कारी और धोखे से दूर रहता है। पांच वक्त की पाबंदी से नमाज़ पढ़ता है, 30 रोजे़ रखता है और इस्लाम धर्म के एक और पिलर यानि ज़कात देता है। उन्होंने कहा कि सिर्फ़ रमज़ान में ही इन सब चीज़ों से दूर न रहें बल्कि हमेशा के लिए इन सब बुरी चीज़ों को छोड़ दे।
उन्होंने आगे कहा कि खुद को पाक करने का महीना है रमज़ान और इस महीने के सदके अल्लाह बंदों को रूह और जिस्म दोनों से पाक कर देता है। इस्लामी साल हिजरी के मुताबिक 12 महीनों में सबसे मुक़द्दस यानी पवित्र माह रमज़ान को माना गया है। ये पूरा महीना हर इन्सान के लिए अपने आप को जिस्मानी, दिली, ज़ेहनी और रूहानी ऐतबार से पाक कर लेने का महीना माना जाता है।
रमज़ान का एक महीना रोज़ेदार के लिए ट्रेनिंग की तरह है, जिसमें पूरी तरह से ट्रेन्ड होकर बाक़ी के 11 महीने इस तरह गुज़ारने हैं कि मानो आप रोज़े से हैं। इस माह में एक विशेष नमाज़ होती है जिसे तरावीह कहा जाता है। ये नमाज़ हाफ़िज़ अदा करवाते हैं, जिन्हें पूरा क़ुरआन-ए-पाक कंठस्थ होता है।
वे बिना देखे लगातार क़ुरआन की आयतों की तिलावत करते हैं। क़ुरआन-ए-करीम में तीस पारे यानी अध्याय हैं और हाफ़िज़ तरावीह की नमाज़ में रोज़ाना एक पारे की तिलावत करते हैं। इस तरह से इस पूरे महीने में क़ुरआन के सभी 30 पारों की तिलावत मुकम्मल हो जाती है। उन्होंने युवाओं से अपील करते हुए कहा कि मज़हब के रास्ते पर चलकर ही समाज व देश की बेहतरी की जा सकती है।