औरंगाबाद।राज्य सरकार की दोहरी शिक्षा नीति का दंश वित्त रहित शिक्षा नीति के तहत संचालित इंटर स्तरीय शिक्षण संस्थानों को भुगतना पड़ रहा राज्य में वित्त रहित शिक्षा नीति के तहत 517 इंटर कॉलेज संचालित है। जिन्हें निरसित बिहार इंटरमीडिएट शिक्षा परिषद पटना से प्रस्वीकृति प्राप्त हुआ था। बिहार इंटरमीडिएट शिक्षा परिषद का बिहार विद्यालय परीक्षा समिति में विलय के समय यह तय किया गया था कि प्रस्वीकृत इंटर शिक्षण संस्थानों के मूल
स्वभाव या प्रस्वीकृत नियमो के साथ किसी भी प्रकार का छेड़ -छाड़ नही किया जायेगा। राज्य सरकार की दोहरी नीति के कारण विहार विद्यालय परीक्षा समिति लगातार नियमो की अनदेखी कर शर्तो का उल्लंघन कर इंटर महाविद्यालयों के स्थापना प्रकृत स्वभाव से छेड़- छाड़ कर वित्त रहित इंटर संस्थानों के अस्तित्व को समाप्त करने की साजिश रच रही। प्रस्वीकृति प्राप्त इंटर महाविद्यालयों में प्रत्येक संकायों में 384 – 384 सीट संख्या आवंटित किया गया था।
औरंगाबाद जिले में लगभग 17 ऐसे इंटर स्तरीय महाविद्यालय को प्रस्वीकृति प्राप्त है। पूर्व में ऐसे सभी शिक्षण संस्थानों को 384 – 384 सीट आवंटित किया गया था। दशकों से ऐसे सभी महाविद्यालयों में आवंटित छात्र संख्या के आधार पर नामांकन होते रहा है। अब सरकार की गलत नीतियों के चलते ऐसे संस्थानों को नयी नियमावली बना कर पुनः जांच के लिये बाध्य करना और जांच के बाद ऐसे संस्थानों को पूर्व से निर्धारित सीट संख्या को घटा कर 120 कर दिया गया।
सरकार द्वारा जब वित्त रहित शिक्षा नीति के तहत प्रस्वीकृति प्रदान की थी तब उस समय के नीतियों के आलोक में सभी शिक्षण संस्थानों में आवश्यकता अनुसार शिक्षकों कर्मचारियों की नियुक्ति किया गया। जो दशकों से राज्य के शिक्षा की जरूरतों को पूरा करने में लगे रहे।
वित्त रहित शिक्षा नीति के तहत संचालित संस्थानों में बिना पैसा के ऐसे शिक्षक और कर्मचारी सेवा देने लगे। धीरे धीरे शिक्षा के प्रति जागरूकता आने पर संस्थानों में छात्रों का आना जाना होने लगा और प्रबंधन कार्यरत कर्मियो को आंशिक भुगतान करने लगा।
2008 में वित्त सम्पोषित होने पर कर्मचारियों की उम्मीदें बढ़ने लगी और अनुदान की राशि से उनके सपने साकार होने की आश जगी। सीट संख्या घटाये जाने पर ऐसे सभी इंटर स्तरीय शिक्षण के कर्मचारियों का अस्तित्व संकट में आ गया है। एक तरफ सीट संख्या घटने से संस्थानों की आय समाप्त हो गयी है। तो दूसरी तरफ 2016 से अनुदान को जांच के नाम पर रोका जाना कर्मचारियों को आत्महत्या को मजबूर कर रही।
राज्य की शिक्षा की जरूरतों को पूरा करने में वित्त रहित शिक्षकों का महत्वपूर्ण योगदान है। आज अनुदान की राशि नही देना पड़े इसी नीति के तहत लगातार जांच का भय दिखला कर संस्थानों का भयादोहन किया जा रहा। आखिर क्या कारण है कि समाज के द्वारा शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये इंटर महाविद्यालयों को निजी भूमि देकर खोला गया।
ऐसे संस्थानों के पास पर्याप्त भूमि, उपस्कर, भवन, प्रयोगशाला, पुस्तकालय के साथ ही योग्य शिक्षकों की उपलब्धता के बाद भी सरकार इन्हें दोयम दर्जे की पहचान पर जीने को विवश कर रही। तो दूसरे तरफ बगैर आधारभूत संरचना के उत्क्रमित विद्यालयों में इंटर शिक्षा को अनिवार्य किया जा रहा।
माननीय मुख्यमंत्री जी / माननीय शिक्षा मंत्री बिहार से आग्रह है कि ऐसे वित्त रहित / वित्त सम्पोषित शिक्षण संस्थानों के अस्तित्व की रक्षा कर मानवीय मूल्यों की रक्षा की जाये ताकि नैसर्गिक शिक्षा की अवधारणा को पूरा किया जा सके।