मान्यताओं एवं परंपराओं से ऊपर उठकर बिटिया ने दी अपने पिता की चिता को मुखाग्नि  

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औरंगाबाद। ऐसा माना जाता है कि पिता की चिंता को मुखाग्नि सिर्फ बेटा ही देता है और पुत्र धर्म का पालन कर उनकी आत्मा को तृप्त करता है। लेकिन हमारी संस्कृति और ऐसे संस्कार से बेटियां को मुक्त रखा गया है और ऐसा आज भी प्रचलन है कि बेटियां न तो पिता वे मां के मृत्योपरांत उन्हे कंधा दे सकती है और न ही चिता पर लेटे पिता या माता की मुखाग्नि कर सकती हैं।

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मगर इन सामाजिक मान्यताओं एवं परंपरा से ऊपर उठकर औरंगाबाद जिले के गोह प्रखंड की एक बेटी ने न सिर्फ पिता की अंतिम यात्रा में उनके शव को कंधा लगाया। बल्कि श्मशान घाट पर जाकर मुखाग्नि देकर बेटी होकर बेटे का फर्ज अदा किया।

मामला गोह प्रखंड के जमुआइन गांव की हैं। जहां उस गांव निवासी दिनेश महतो की इकलौती पुत्री सुमन कुमारी ने पिता की चिता को मुखाग्नि दी। वह इंटर की छात्रा है। जानाकारी के अनुसार दिनेश महतो क़रीब 15 वर्षों से सिकंदराबाद शहर में रहकर एक निजी कंपनी में काम करते थे। दो साल से उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं था। चिकित्सक के सलाह पर उन्होंने आठ माह पहले हार्ट का ऑपरेशन करवाया था। लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण दवाईयों की खर्चा और पारिवारिक बोझ से वे काफ़ी परेशान थे।

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इसी क्रम में बीते रात उनकी मौत हो गई। उन्हें कोई पुत्र न होने के कारण इकलौती बेटी सुमन ने मंगलवार को पिता की मौत के बाद उनके अर्थी को कंधा दिया बल्कि बेटा होने का फर्ज निभाया। मुखाग्नि देने के बाद वह अंतिम संस्कार के पश्चात चलने वाले 12 दिनों के कर्मकांड के कार्यों में जुट गई है।

इस मौके पर उपस्थित सुमन के चाचा रामदेयाल महतो, ग्रामीण दिलीप कुमार विश्वकर्मा, नेता कृष्ण, इंद्रदेव महतो, सुरेंद्र सिंह चंद्रवंशी, नरेश महतो, राजेंद्र महतो, सुधीर कुमार आदि ने उसके इस हौसले की न सिर्फ सराहना की बल्कि उसे ऐसा करने के लिए उसके आत्मबल को मजबूत कर रहे हैं।सुमन के द्वारा मुखाग्नि दिए जाने की चर्चा आस पास के इलाकों में हो रही है।

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