दाउदनगर में गुजरा लोकनायक का बचपन, जम्होर में भी की थी जेपी ने बैठक

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डॉ संजय रघुवर, अध्यक्ष, मगधांच समग्र विकास समिति एवं लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी बिहार

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विशेष। रामलीला मैदान नई दिल्ली दिन के विशाल सभा को संबोधित करने के बाद 25 जून की रात्रि में गांधी शांति प्रतिष्ठान नई दिल्ली में लोकनायक जयप्रकाश नारायण विश्राम कर रहे थे। तभी इनकी गिरफ्तारी कर ली गई। गिरफ्तारी की सूचना पाकर जेपी से मिलने समाजवादी आंदोलन से राजनीति शुरू करने वाले तत्कालीन कांग्रेसी सांसद श्री चंद्रशेखर मिलने आए तो उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया और देश में बड़ी गिरफ्तारी के बड़े नेताओं की 25 जून 1975 को हुई।

गिरफ्तारियों के साथ-साथ देश पर आपातकाल ठोक दिया गया। सारे नागरिक अधिकार छीन लिए गए तथा प्रेस पर भी पाबंदी लगा दी गई। यह विदित हो की बिहार में 1974 में छात्र आंदोलन प्रारंभ हुआ जो बाद में व्यवस्था परिवर्तन एवं समतामूलक समाज निर्माण के लिए यह आंदोलन संपूर्ण क्रांति के रूप में तब्दील हो गया।

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पूरे देश में इसके व्यापक प्रभाव पड़े जिसकी चर्चा पूरी दुनिया में होनी शुरू हो गई। यह अवगत कराना आवश्यक है कि कांग्रेस के अंदर युवा तुर्क से मशहूर श्री चंद्रशेखर के अतिरिक्त रामधन, मोहन धारिया, कृष्णकांत, के अलावे तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की अपनी बुआ तथा पंडित जवाहरलाल नेहरु की छोटी बहन पंडित विजयलक्ष्मी तथा इनकी पुत्रियां भी गिरफ्तार कर ली गई! इन गिरफ्तारियां कासर बिहार के औरंगाबाद जिला पर भी पड़ा।

क्योंकि यहां से लोकनायक जयप्रकाश का आत्मीय संबंध था आत्मीय संबंध होने का पहला कारण उनके पिता के सिंचाई विभाग के राजस्व शाखा के अराजपत्रित अधिकारी के रूप में दाउदनगर में पदस्थापित होना। जहां जेपी का बचपन गुजरा इसके पश्चात 1942 अगस्त क्रांति के दौरान हजारीबाग जेल से फरार होने के पश्चात कुछ दिनों तक जम्होर में उनका भूमिगत होना तथा जब वह नेहरू के  अनुरोध पर नेहरू मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हुए और सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया।

जम्होर के धर्मशाला में ही राष्ट्रीय अधिवेशन हुए थे जब जयप्रकाश जी राजनीति से उठकर विनोबा के साथ सर्वोदय में गए तो गया जिला उनका मुख्य रूप से कार्यक्षेत्र बना जहां आज के नवादा जिला के सेखोदरा में आश्रम स्थापित किया। इसके अलावा  औरंगाबाद भी उनका कार्यक्षेत्र रहा। आज भी खादी ग्रामोद्योग निर्माण मंडल इस जिले में मौजूद है। यह दुर्भाग्य है कि जो लोग उस आंदोलन में शामिल थे आज वह खुद तानाशाह हो गए है और सारे मूल्यों को तिरोहित कर दिया है।

चाहे वह बिहार की सरकार हो, चाहे वह केंद्र की सरकार हो। इन सरकारों को लोकतांत्रिक मूल्यों से कोई वास्ता नहीं रह गया है। बल्कि यह पूंजीवाद की पोषक हो गई हैं। आज सन 74 से हजार गुना बदतर परिस्थितियां हैं जनता को संप्रदायिकता जातिवाद इत्यादि के नारों में उलझा कर युवकों को बेरोजगारी के दलदल में धकेल दिया गया है। ऐसी स्थिति में 25 जून 1975 के कार्यालय को याद किया जाना और उसकी पूर्ण आवृत्ति नहीं हो तथा जो संपूर्ण क्रांति के उद्देश्य थे उसकी पूर्ति के लिए काम किए जाने की आवश्यकता है।

 

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