औरंगाबाद। सदर अस्पताल को चिकित्सक के रूप में एक बेहतर महिला चिकित्सक मिला है और उनके इलाज से न सिर्फ मरीजों को रोगों से मुक्ति मिल रही है। बल्कि उनसे इलाज कराने के लिए भीड़ लग रही है। यह मिला चिकित्सक मरीजों के लिए किसी देवी के अवतार से कम नहीं।
इस महिला चिकित्सक की खासियत यह है कि वह एक रोग नहीं बल्कि छह क्रिटिकल डिजीज का इलाज करतीं है। उनके द्वारा मधुमेह, हाइपर टेंशन, किडनी, लीवर, लंग्स एवं हृदय के रोगियों का इलाज किया जाता है। इन बीमारियों से जूझ रहे हजारों मरीज अपना इलाज कराकर तनाव मुक्त जीवन व्यतीत कर रहे है।
ये महिला चिकित्सक हैं डॉक्टर देवाश्री सिंह जो हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉक्टर विकास सिंह की पत्नी है। ये सर्व विदित है कि जिसने जन्म लिया है उसकी मौत निश्चित है। लेकिन यदि बेहतर चिकित्सक मिल जाए तो मरीज की मौत को काफी हद तक टाला जा सकता है। ऐसा ही देखने को औरंगाबाद में भी मिला जहां डॉक्टर देवाश्री सिंह के इलाज ने मुर्दे में जान फूंक दिया और लगभग मृत हो चुकी एक महिला मरीज बिल्कुल स्वस्थ हो गई।
बात उन दिनों की है जब डॉक्टर देवाश्री खुद प्रसव पीड़ा से जूझ रही थी और इनके सामने उक्त महिला का मामला सामने आया। मरीज महिला शहर के एक प्रसिद्ध प्रोफेसर की मां थी। प्रोफेसर साहब की मां की तबियत जब बेहद ही खराब हो गई तब इनका चिकित्सीय कौशल सामने आया। प्रोफेसर साहब के मां की स्थिति यह हो गई थी कि उन्होंने अन्न जल तक का त्याग कर दिया था और ऐसा लगने लगा कि उनके प्राण निकलने ही वाले हैं।
प्रोफेसर साहब ने अपनी मां की हालत को देखते हुए पूरे विधि विधान से ब्राह्मण को बाछी तक दान कर दिया था। उन्होंने अपने मां की स्थिति की जानकारी डॉक्टर देवाश्री सिंह को दी। मरीज की स्थिति को परखते हुए डॉक्टर ने उन्हें अविलंब सदर अस्पताल के आईसीयू में भर्ती कराने का सलाह दिया। प्रसव पीड़ा में रहने के बावजूद डॉक्टर देवाश्री आईसीयू में कार्यरत नर्सों के संपर्क में रहकर इलाज शुरू किया और उनके स्थिति की जानकारी लेती रही।
इलाज ने असर दिखाना शुरू किया, प्रोफेसर साहब की मां जो लगभग मृत हो चुकी थी उनमें जीवन दिखने लगी और लगभग दस दिनों के इलाज के बाद वह पूरी तरह से स्वस्थ होकर अपने घर आ गई और कई माह तक परिवार के साथ अपने शेष जीवन को गुजारा।
ऐसी ही एक स्थिति एक पूर्व मुखिया के चाची(मां से कम नहीं) के साथ हुआ और पूर्व मुखिया को यह मलाल रहा कि यदि डॉक्टर देवाश्री उनके चाची को देख लेती तो आज वह जीवित रहती। ऐसे कई उदाहरण भरे पड़े है जो मरीजों के लिए लाभदायक रहे।
जब पूरा देश कोरोना के संकट से जूझ रहा था तब यहां के मरीजों को बचाने के लिए वर्ष 2021 में सदर अस्पताल में आईसीयू की शुरुआत की गई। यह वक्त कोराना का दूसरा चरण था जो पहले चरण से घातक था और इससे ग्रसित मरीज लगातार मौत की आगोश में समा रहे थे।
उस वक्त इन्हें आईसीयू का इंचार्ज बनाया गया और इनके चिकित्सीय सेवा के कारण कई मरीजों की मौत को टाला गया। बिहार में मौत के आंकड़ों में औरंगाबाद की स्थिति बेहद कम होने के कारण स्वास्थ्य विभाग को राज्य स्तर पर पुरस्कृत किया गया।