हमारी पारंपरिक संस्कृति से जुड़ा पर्व है जिउतिया गीतावली सिन्हा

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जिउतिया एक धार्मिक पर्व है। यह हमारी पारंपरिक संस्कृति से जुड़ा पर्व है। हमारे देश के विभिन्न पर्वो की तरह इस पर्व का भी विशेष महत्व है।प्रत्येक साल इस पर्व को श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। यह पर्व अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है और नवमी तिथि को पारन किया जाता है।

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इस पर्व में महिलायें अपनी संतान के लिये स्वास्थ्य और उनके दीघार्यु होने की कामना करती हैं। इसे देश के विभिन्न राज्यों में अपनी-अपनी परंपार के अनुसार मनाया जाता है। जिउतिया पर्व एक पौराणिक कथा से जुड़ा है, जिसमें जीमूतवाहन की पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है। महिलायें अपने संतान के लिये स्नानादि कर निर्जली व्रत रखती हैं। इस पर्व की शुरूआत नहाय-खाय के साथ शुरू हो जाती है और इसी दिन से पूजा-विधि भी शुरू हो जाती है।

इस पर्व में झिंगनी एवं नोनी के साग का विशेष महत्व है। ओठगन बनाने की परंपरा है, जो एक तरह का ठेकुआ होता है। इसे गुड़ृ, आटा और घी में तलकर बनाया जाता है। बिना लहसुन-प्याज के सात्विक तरीके से महिलायें भोजन तैयार करती हैं। वे अपने संतान के लिये पर्व के दिन शाम को पूजा करके गले में रेशम की माला औोर सोने -चांदी से निर्मित आभूषण गले में पहनती हैं।

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चिल्ही और सियारिन की कथा सुनती हैं। यह कथा उस समय की है जब गरूड़ आकर बच्चों को खा जाता था और महिलायें चिंतिति और शोकाकुल रहतीं थी। इसी के समाधान के लिये जीमूत भगवान के बताय गये इस पर्व को करती हैं।जिससे उनके बच्चे दीर्घायु हो सके। कथा सुनने के बाद अगले दिन तरह-तरह के व्यंजन बनाकर पारन करती हैं। इस तरह से तीन दिन में यह पर्व पूरा होता है।

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