नैतिक पतन के आगे तार तार हो रहे हैं सामाजिक बंधन

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राकेश कुमार, लेखक – लोकराज के लोकनायक के फेसबुक वाल से

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अभिव्यक्ति। चाहे नर हो या नारी; अगर बन जाए भ्रष्ट अधिकारी तो यही होगा जो ज्योति मौर्या कर रही हैं. भ्रष्ट होने के कई आयाम हैं- आर्थिक, सामाजिक, नैतिक, शारीरिक आदि.

जैसे ही तार्किक व सर्वमान्य स्थापित सामाजिक बंधन टूटते हैं तो भ्रष्ट आचरण जन्म लेने लगता है. विवाह सामाजिक और विश्वास का बंधन है और इसमें यौन शुचिता और अहम् का विसर्जन या अहं को न्यूनतम स्तर पर लाकर दम्पत्ति जीवन का निर्वाह करते हैं.

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वैवाहिक जीवन में यौन संबंध बाजार नियम के अनुसार संचालित नहीं होता है, बल्कि नैतिक मूल्य के आधार पर संचालित होता है. अगर ऐसा होता तो वैवाहिक संबंधों से ज्यादा विवाहेत्तर संबंधों पर समाज का आस्था होता.

समाज अगर नर -नारियों के ‘ यौन स्वच्छंदता’ को खुलकर मान्यता दे दे तो; न तो घर बसेगा और न ही परिवार बनेगा. हर घर खुला कोठा की तरह होगा जिसमें यौन स्वच्छंद नारी की यौन इच्छा माँग के लिए आपूर्तिकर्ता नर प्रवेश करेगा और यही हाल यौन स्वच्छंद नर के लिए भी होगा जिसके लिए नारियाँ बाजार की माँग-पूर्ति नियम के अनुसार कार्य करती दिखेंगी.

विवाह के समय भारत में वर-वधू की तलाश समाजिक हैसियत के आधार पर होती है और सर्वदा हर पिता की कोशिश यह होती है कि बेटियाँ अपने से ज्यादा सामाजिक हैसियत व प्रतिष्ठा वाले घरों में ब्याही जाए.

अब बात ज्योति मौर्या की जाए. इनका विवाह हुआ.इनके द्वारा आलोक मौर्या के साथ संतानोत्पत्ति का कार्य संपन्न किया गया जो विवाह और परिवार के लिए सामाजिक, जैविक और नैतिक दायित्व हैं. यहाँ तक हरेक तरह के अहं और हैसियत का मसला बराबरी का रहा.

बात तब बिगड़ी जब ज्योति मौर्या की हैसियत बदल गई. अधिकारी बनी. सत्ता की प्रतिनिधि बनी. सत्ता में शक्ति संकेन्द्रित होती है जो सदैव हरेक रूप में भ्रष्ट हरेक करने की ताकत रखती है. यहीं से ये आर्थिक भ्रष्ट हुईं और फिर शारीरिक व यौन भ्रष्टाचार की शिकार होकर पति की जगह किसी अन्य के साथ यौन तुष्टि में लग गईं.

मैं तो बहुत ऐसे महिला अधिकारियों के यौन भ्रष्टाचार की कहानी सुन चुका हूँ जो पति को धोखा देकर ड्राइवर, गार्ड आदि के साथ यौन तुष्टि में लगी हुई हैं. मैं वैसे बहुत सारे पुरुष अधिकारियों की भी कहानी सुन चुका हूँ जो अपनी पत्नी के साथ बेवफाई कर दूसरों के यौन भोग में संलिप्त हैं.

ज्योति मौर्या प्रकरण यौन उच्छृंखलता और बेवफाई का चरम उदाहरण है. यहाँ दो घर उजड़ रहे हैं.यौन शुचिता एवं यौन नैतिकता पुरुष और महिला दोनों के लिए निहायत आवश्यक हैं, नहीं तो भारत का मूल्य आधारित समाज व समाजिक मूल्य का बिखराव हो जाएगा. यहाँ तब नर-नारी के संबंधों की निजता(Privacy) स्वत: संरक्षित हो जाएगी.

सनातन संस्कृति विवाह सात जन्मों के बंधन के विश्वास पर आधारित है न कि इस्लाम के’ तीन तालाक’ के आयातित मूल्यों पर.
नपुंसकता वाले मामले और घरेलू उत्पीड़न वाले मामले को छोड़कर किसी भी मसले में न तो विवाह विच्छेद को अनुमति मिलनी चाहिए और न ही यौन स्वच्छंदता को इजाजत मिलनी चाहिए.

क्योंकि यौन सुख का न तो कोई चरम और न ही कोई अंत. इसी वजह से तो भारतीय समाज में गृहस्थ आश्रम की अवस्था के बाद आध्यात्म में मन रमाने और मोक्ष प्राप्ति की ओर प्रवत्त होने को कहा गया है.निजता का हवाला देकर यौन उच्छृंखलता को प्रश्रय दिया जाना पुरुष और महिला दोनों के हित के लिए अहितकर है.

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