राकेश कुमार(लेखक – लोकराज के लोकनायक)
बिहार शासन द्वारा शीर्ष प्रशासनिक अधिकारियों के माध्यम से अधीनस्थ अधिकारियों को ईमानदारी की शपथ दिलाये जाने की पहल काबिल-ए-तारीफ है। हरेक प्रदेशों को ऐसी पहल करनी चाहिए। सुना है कि महात्मा बुद्ध की ललकार और उपदेश से डाकू अंगुलिमाल भी संत हो गया था। डाकू रत्नाकर भी आदिकवि वाल्मीकि हो गये थे। जीवन के किस अवस्था में, किस बात और प्रसंग का प्रभाव, किस व्यक्ति पर पड़ जाए, यह कहना बड़ा मुश्किल है। संभव है कि शपथ रंग लाए।
संविधान की शपथ लेने वाले शासन के लोग जब अपने सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और नैतिक जीवन में उस कार्य को अंजाम देने में लगे रहते हैं जिसे ‘भ्रष्टाचार’ कहते हैं तो प्रशासन के लोगों पर शपथ क्या रंग लाएगा, यह तो देखने वाली बात होगी। बिहार सरकार से एक अपील है कि शपथ के पहले की समस्त अधिकारियों और कर्मचारियों की अकूत संपत्तियों की जाँच कर उन्हें बता दिया जाए ताकि वे अब इस प्रयास में लग जाएं कि इसे कैसे स्थिर रखा जाए?
यह भी अपील है कि शपथ के पहले की संपत्ति के अर्जन के लिए कोई कार्रवाई न की जाए क्योंकि संतत्व जीवन के किसी भी अवस्था में आ सकता है। एक कहावत है न कि सत्तर चुहे खाकर भी बिल्ली हज को चली गई थी।