डीजे व आतिशबाजी के शोर में गुम हो गई शहनाई की मधुर धुन
राजेश मिश्रा
आधुनिक शोर-शराबे के बीच गुम होती जा रहीं वैवाहिक परंपराएं, वैवाहिक कार्यक्रम के दौरान निभाई जाने वाली अधिकांश रश्मों को भूलती जा रही युवा पीढ़ी डीजे के शोर में गुम हो गई शहनाई की मधुर धुन एक जमाने में विवाह कार्यक्रमों की शान हुआ करती थीं।
बगैर शहनाईयों के विवाह कार्यक्रम अधूरे ही माने जाते थे। शहनाई की वह मधुर धुन समय के साथ बैंड और अब इसके बाद डीजे के शोर में दब गई है। वैवाहिक कार्यक्रमों में अब शहनाई की मधुर धुन सुनाई ही नहीं देती है।
जो बीत गया वह दौर लौट के ना आएगा शादी विवाह में अब पुरानी परंपराएं लगभग खत्म होते जा रही है। पुराने जमाने की तो वाद्य यंत्र लगभग समाप्त हो चुके हैं। अब तो आतिशबाजी के साथ हाई डेसीबल के डीजे बजाकर तांडव मचाने में ही लोगों के द्वारा शान शौकत समझा जा रहा है।
लेकिन स्वास्थ्य के दृष्टि से कतई जायज नहीं है। इसमें पैसे की तो बर्बादी होती ही है। साथ हीं पटाखे से निकलने वाले धुआ एवं डीजे से निकलने वाले तेज ध्वनि से स्वास्थ्य परबुरा प्रभाव पड़ता है। लेकिन इस समाज को कौन समझाए कभी-कभी तो देखा जाता है कि पटाखे से निकली चिंगारी से भीषण आग लगी की घटनाएं भी घट जाती है।
और भारी नुकसान हो जाता है,और हाई डेसीबल के डीजे से निकलने वाले ध्वनि से तो खास करके हृदय रोगी,वृद्ध जनों को काफी परेशानी होती है।लेकिन आधुनिक युवा वर्ग के लोगों को कौन समझाए डीजे नहीं बजेगा तो दोस्त नाराज हो जाएंगे यही उनका जवाब होता है।जो कि किसी दृष्टिकोण से जायज नहीं है।
इन सबों के द्वारा डीजे एवं आतिशबाजी में शान शौकत समझा जाता है। आतिशबाजी से कितना नुकसान होता है इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि दरभंगा जिले में एक शादी समारोह में किए गए आतिशबाजी से भीषण आग लगी की घटना घटी जिसमें 6 लोगों की मौत हो गई।
खुशियां मातम में बदल गई इससे दुखद और क्या हो सकता है।इस विषय पर समाज को गंभीर रूप से चिंतन करने की जरूरत है। साथ ही जागरूकता कार्यक्रम चलाकर लोगों को भी जागरूक करने की जरूरत है।
हालांकि सरकार के द्वारा हाई डेसीबल के डीजे एवं पटाखे के प्रयोग पर बैन जरूर लगाए गए हैं लेकिन किसी के द्वारा राज्य सरकार के आदेश को पालन नहीं किया जाता है। इस पर पूर्ण रूप से सख्ती बरतने की जरूरत है।