NDA के पिछड़ने के क्या है मायने,कहां मजबूत रहा विपक्ष

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राकेश कुमार(लेखक – लोकराज के लोकनायक)

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विश्लेषण। लोक सभा, 2024 के परिणाम घोषित हुए। अप्रत्याशित सफलता कांग्रेस के नेतृत्व वाली गठबंधन को मिली किन्तु सरकार बनाने वाली जादुई आंकडे से ज्यादा जीत हासिल कर भी भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली गठबंधन को प्रत्याशित सफलता नहीं मिल पाई। एक गठबंधन की प्रत्याशित सफलता का न मिलना दूसरे गठबंधन के लिए अप्रत्याशित सफलता में परिवर्तित हो गई।
भाजपा के नेतृत्व वाली नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस ने तकरीबन 290 सीटें जीतीं, वहीं कांग्रेस की नेतृत्व वाली गठबंधन ने तकरीबन 230 सीटों पर जीत हासिल किया।

आशा है कि केन्द्र में पुनः नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनेगी, अगर गठबंधन के साथियों ने साथ दे दिया। क्योंकि भाजपा वैसे तो इस चुनाव में सबसे बड़ा दल बनकर उभरी है किन्तु सरकार बनाने के लिए बहुमत के जादुई संख्या को वह स्वयं प्राप्त नहीं कर सकी है।

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एनडीए को प्रत्याशित जीत क्यों नहीं मिल सकी, इस पर सूक्ष्म विश्लेषण विशेषज्ञ करते रहेंगे। लेकिन मौटे पर मेरा मानना है कि मुद्दे को धड़ाधड़ समाप्त करने में विश्वास रखने वाली मोदी जी की सरकार को यह महँगा पड़ गया। भारत की जनता किसी बात को लंबे समय तक याद नहीं रखती है और कुछ दिनों बाद परिवर्तन की भी चाह रखती है। श्रीराम मंदिर का धड़ाधड़ निर्माण और प्राण प्रतिष्ठा में मोदी सरकार की कृत संकल्पता को श्रीअयोध्यापुरी की श्रीराम की ही प्रजा और लोकतंत्र के जनार्दन जनता ने भूला दिया तो श्रीअयोध्यापुरी से दूर के लोग कैसे याद रखते!

फैजाबाद से भाजपा प्रत्याशी की हार हो गई। श्रीराम की आभा से प्रकाशित और आधारभूत संरचना के विकास से प्रकाशमान श्रीअयोध्यापुरी अभी तो जश्न में डूबी ही थी, तबतक भाजपा के प्रत्याशी की कांति चली गई।“मुद्दे जिंदा रहेंगे, तभी वोट बैंक जिंदा रहेगा। यह सूत्र वाक्य है।“

दूसरी बात, भाजपा के उम्मीदवारों की निर्भरता मोदी जी पर इतनी है कि स्थानीय निकायों के चुनाव से लेकर संसद के चुनाव तक में मोदी के नाम पर ही जनता से वोट माँगते हैं। अपनी करनी-धरनी कुछ है ही नहीं। बेचारे मोदी! कहाँ-कहाँ और किसको-किसको वोट दिलवायें।

तीसरी बात, केन्द्र में भाजपा की सरकार के आते ही देश में आधारभूत संरचानाओं के विकास की गति तेज हो जाती है किन्तु मध्यमवर्गी परिवारों का सहारा खासकर सरकारी नौकरियाँ की रिक्तियों में रिक्तता आ जाती है। चाहे अटल जी की सरकार हो या मोदी जी की। अटल जी ने किसी आर्थिक सलाहकार की सलाह पर रेलवे रिक्ट्रयूटमेंट बोर्ड, बैंकिंग रिक्ट्रयूटमेंट समेत सरकारी सेवाओं के सृजन वाली सारी संस्थानों को समाप्त कर दिया गया था।

इस समापन का असर यह था कि नाराज युवाओं और उनके परिवारों ने अटल जी की अगली सरकार की संभावना को ही नकार दिया था। ‘फील गुड’ के नारे के साथ चुनाव में उतरने वाली भाजपा को 2004 में ‘फील बैड’ करा दिया था।

मोदी सरकार में भी दूरदर्शी नीतियों के तहत देश में आधारभूत संरचना के विकास को अभूतपूर्व गति मिली है। इस बात को कोई भी नकार नहीं सकता। यहाँ तक कि जिसने विरोध में वोट किया है, वह भी नहीं। बिजली-बत्ती, सड़क आदि सब चकाचक हैं किन्तु “Employment Vacancy” न्यूनतम पर है। मध्यमवर्गीय परिवार के युवा के पास मंझोले स्तर के व्यवसाय के लिए पूँजी की भी कमी होती है और ठेला-रेहड़ी लगाने और टोकरी-कुदाल लेकर सड़क पर मजदूरी करने में प्रतिष्ठा भी आड़े आती है।

यह बात किसी जाति-विशेष के साथ लागू नहीं होती है बल्कि मध्यमवर्गीय परिवार के सभी शिक्षित युवाओं पर लागू होती है। वैसे में सरकारी नौकरी के विज्ञापनों का विलुप्तिकरण और विपक्षी दलों के द्वारा करोड़ों नौकरियाँ देने के तिलस्मी वादे कारगर हो जाते हैं और भाजपा की खटिया खड़ी हो जाती है। मोदी जी की अगली सरकार को रोजी-रोजगार और सरकारी सेवाओं में नियुक्तियों की रिक्तियों(GOVT JOB VACANCY) पर ध्यान देना होगा। जनादेश ने यह भी संकेत दिया है कि रोटी राम पर सदैव भारी रही है।
जे पी नड्डा का राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बारे में दिया गया बयान कि अब भाजपा इतनी बड़ी पार्टी हो गई है कि उसे आरआरएस की आवश्यकता नहीं है।

मोदी सरकार भ्रष्टाचार पर कड़ा प्रहार कर रही है। इससे जनता में खुशी है किन्तु जनता तब निराश हो जाती है, जब अपने दल के भ्रष्टाचारियों पर कहीं कार्रवाई होती नहीं दिखती है। आशा है कि अपने तीसरे कार्यकाल में मोदी जी इस बात का खास ख्याल रखेंगे।
वैसे, मेरा अध्ययन कहता है कि जब भी सत्ताधारी दल के खिलाफ विपक्ष पार्टियों ने एकजुट होकर चुनाव लड़ने का प्रयास किया है, तब बिखरे हुए मत एकजुट होकर सत्ताधारी दल को बहुमत से दूर करने में कामयाबी विपक्षियों को मिली है।

अंत में भाजपा को यह भी सलाह होगी कि जनता से संवाद स्थापित कर सही उम्मीदवारों का चयन किया जाए और कर्मठी कार्यकर्ताओं को उम्मीदवारी का मौका दिया जाए।

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