समान नागरिक संहिता पर औरंगाबाद के बौद्धिकों के साथ सांसद का संवाद हुआ संपन्न,क्या है समान नागरिक संहिता,जानें

6 Min Read
- विज्ञापन-

राकेश कुमार(लेखक – लोकराज के लोकनायक)

- Advertisement -
Ad image

औरंगाबाद। शनिवार की रात सांसद सुशील कुमार सिंह के द्वारा “समान नागरिक संहिता” विषय पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया था. मुझे भी आमंत्रण प्राप्त हुआ तो थोड़ा सुखद आश्चर्य हुआ. न जाने क्यों मुझे यह संवाद राजनीतिक कम और बौद्धिक ज्यादा लगा! वजह भी है- संवाद में शहर के सारे चिकित्सकवृंद, अधिवक्तागण, प्राध्यापक, अध्यापक, पत्रकार और प्रबुद्ध सहकार शामिल किये गये.

“समान नागरिक संहिता(Uniform Civil Code) पर आपके विचार, आपकी प्रतिक्रिया और सुझाव पर मैंने भी अपना विचार रखा. बताया कि संविधान के भाग-3 में अनु.14 कहता है-विधि के समक्ष समता और विधि का समान संरक्षण’ यह मूल अधिकार है जिसमें कानून की नजर में सब बराबर और कानून सबके लिए बराबर.

- Advertisement -
KhabriChacha.in

संविधान के भाग-4 मेंं राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का वर्णन है जो अनुच्छेद-36 से 51 तक में उल्लिखित हैं. यह राज्य/सत्ता/प्राधिकार के लिए वैधानिक रूप से बाध्यकारी तो नहीं है किन्तु नैतिक रूप से बाध्य करती है -राज्य को विधान बनाने के लिए. इसी के अंतर्गत अनुच्छेद-44 है जो समान नागरिक संहिता(UCC) की बात करता है.

आपके मन में बात उठना स्वाभाविक है कि क्या देश में सभी नागरिकों के लिए एक तरह का कानून नहीं है? क्या कानून का वर्गीकरण जाति या धर्म के आधार किया गया है? क्या हत्या के जुर्म में धर्म के अनुसार अलग-अलग कानून व अलग-अलग कानूनी कार्रवाइयां होंगी?आपने देखा होगा कि आपके जिले की कचहरी में बड़े साइनेज पर लिखा होता है- ” जिला व्यवहार एवं सत्र न्यायालय(District Civil & Session Court).यानी हमारे देश के विधान/कानून को दो भागों में बांटा गया है-

1.अपराध संहिता(Criminal Law) और

2. व्यवहार संहिता(Civil Code).

अपराध संहिता(Criminal Law) तो देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान हैं यानी अपराध चाहे किसी भी जाति या धर्म का व्यक्ति करेगा, अपराध की प्रकृति के अनुसार IPC(भारतीय दंड संहिता) और CrPC के प्रावधानों के अनुसार मुकदमें दर्ज होंगे और विहीत धाराओं व साक्ष्यों के आधार पर सजाएँ भी होंगी. लेकिन यह केवल फौजदारी मामले तक ही सीमित है.

अब बात सिविल मामले की

जब बात विवाह(Marriage),संपत्ति(Property) और उत्तराधिकार(Succession) आदि के मामले की होती है तो हमारे देश का कानून पंगु हो जाता है. एक देश, एक कानून की अवधारणा खंडित हो जाती है. खासकर इस्लाम धर्मावलंबी यानी मुस्लमानों के मामले में सरकार का कोई कानून नहीं लागू होता है जबकि सन् 1955 के पहले तक हिन्दुओं के सिविल मामले के लिए भी कोई कानून नहीं था-देश में. मान्यताओं-रीतियों के अनुसार कानून संचालित होता था. सन् 1956 में हिन्दू विवाह अधिनियम को संसद द्वारा पारित कर लागू किये जाने के बाद देश भर में हिन्दुओं के लिए सिविल मामले में एक विधान लागू हो गया है.

मुस्लमानों के सिविल मामले इस्लाम की मान्यताओं पर आधारित मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा संचालित होते हैं जिसे कई बार माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अतार्किक-अबौद्धिक बताते हुए एक समान नागरिक संहिता बनाने की नसीहत केन्द्र सरकार व राज्य सरकार को देती रही है.

1985 में शाहबानो प्रकरण इसका पहला मिसाल था. बीबी शाहबानो को तलाक के बाद उसमें सक्षम पति द्वारा पत्नी को गुजारा भत्ता देने के न्यायालय के आदेश को इस कारण धत्ता बता दिया गया था क्योंकि शरीयत इसकी इजाजत नहीं देता है यानी इन्सानियत और न्यायालय से उपर है-इनका शरीयत.
लोकतांत्रिक और सभ्य समाज में नर-नारी सभी को समान अधिकार देने और सिविल मामले के संचालन में तार्किक कानूनों को जगह देने देने के लिए जरूरी है.

समान नागरिक संहिता कहाँ है लागू

गोवा में पुर्तगालियों ने शासन के दौरान 1867 में ही समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया था जो 1961 में गोवा की आजादी और भारत गणराज्य का हिस्सा बनने के बाद कतिपय संशोधनों के बाद 1962 में लागू कर दिया गया था.

दुनिया के सारे प्रगतिशील मुस्लमान आबादी यानी इस्लामिक नेशन में भी समान नागरिक संहिता लागू है. जैसे-बांग्लादेश, इंडोनेशिया और मिस्र. क्या भाग-4 के उल्लेख देशव्यापी कानून हो सकते हैं

अनुच्छेद-40 में वर्णित पंचायती राज आज कानून के अस्तित्व में आने के बाद देशव्यापी तीसरी सरकार के रूप में स्थापित हैं. इसी तरह अनुच्छेद-44 में वर्णित समान नागरिक संहिता भी उम्मीदतन जल्द ही देशव्यापी कानून का आकार ग्रहण करेगा.

प्रगतिशील कानून को लागू करने में दकियानूसी समाज सदैव अडंगा डालता रहा है. जब 1828 में ब्रह्म समाज के बैनर तले राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा के अंत के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाया था तो सती प्रथा के अंत हेतु कानून बनाने के पक्ष में काफी कम हस्ताक्षर हुए थे जबकि सती प्रथा को जारी रखने के पक्ष में काफी ज्यादा हस्ताक्षर हुए थे.

साथ ही, परिचर्चा में बिहार के विकास और यहाँ युवाओं के रोजगार के लिए बिहार की भौगोलिक स्थिति-परिस्थिति के अनुसार प्राथमिक क्षेत्र खासकर कृषि के विकास और विविधीकरण, द्वितीयक क्षेत्र यानी कृषि उत्पादों पर आधारित मंझौले उद्योग और तृतीयक क्षेत्र में आईटी हब , मेडिकल हब, कोचिंग हब, ऐतिहासिक स्थल-धार्मिक स्थल पर्यटन के विकास हेतु आधारभूत संरचना के विकास जैसे क्षेत्रों के विकास के माध्यम से रोजगार सृजन व प्रवास रोकने के लिए ‘विजन डॉक्यूमेंट्स’ तैयार करने का सुझाव दिया.

Share this Article
Leave a comment

Leave a Reply

You cannot copy content of this page