ट्रेनी चिकित्सक की रेप के बाद जघन्य हत्या मामले में ममता बनर्जी सड़क पर उतरकर क्यों कर रही है प्रदर्शन
पत्रकार राजेश मिश्रा की कलम से
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में एक ट्रेनी महिला डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के दोषियों को मौत की सजा देने की मांग को लेकर एक रैली का नेतृत्व किया।यह सब देख हर कोई इस बात को लेकर सोच में पड़ गया कि क्या पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी महिला डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के दोषियों को सजा दिलाने में असमर्थ हो गई?
क्या उन्हें अपने ही कानून व्यवस्था पर से भरोसा उठ गया? या फिर संवेदना बटोरने का उन्होंने कोई नया चल चला है? लेकिन कुछ भी हो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की यह हरकत किसी भी सभ्य समाज या शिक्षित लोगों के गले नहीं उतर रही है। लोग यह सोचने को मजबूर हैं कि जबकि राज्य की सता की बागडोर खुद उन्हीं के हाथों में है फिर भी इस तरह के कदम उठा के वह लोगों के बीच क्या संदेश देना चाहती है?जबकि मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस क्रूरतम हत्या को खुदकुशी का रूप देने का भरपूर प्रयास उनके ही शासन में किया जा रहा था।
अब इस मामले को राष्ट्रीय फलक पर आने के बाद जब सरकार की थूकम फजीहत होने लगी तो घड़ियाली आंसू बहाने और संवेदना बटोरने के निरर्थक प्रयास उनके तरफ से किए जाने लगे और यह प्रदर्शन उसी की एक कड़ी है। इस हरकत से एक बार फिर मुख्यमंत्री का दोहरा चरित्र फिर सामने आ गया।जांच का दौर भले ही शुरू हो गया हो लेकिन ध्यान रहे ऐसे वारदातों का अंजाम कोई अकेले व्यक्ति नहीं दे सकता है।
बिना अस्पताल प्रबंधन के मिलीभगत के ऐसे कांड संभव नहीं। धीरे धीरे स्थिति यह बनाने की कोशिश की जाएगी कि न्याय की आस लगाए बैठे परिजन के हौसले भी तोड़े जाएंगे। गवाह खरीदे जाएंगे,फिर तारीख पर तारीख का दौर शुरू होगा अगर फांसी की सजा हो भी जाएगी तो आरोपी आधी रात को अदालत की दरवाजा खटखटाएंगे और फिर उसे बचाने के लिए आखिरी वक्त तक कोशिश की जाएगी।
लोगो के जहां में एक सवाल बार बार कौंध रहा है कि केंद्र सरकार के बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ स्लोगन का फिर तात्पर्य क्या है ? जब ऐसे रेपिस्ट को त्वरित कार्रवाई कर फांसी की सजा मुकर्रर नहीं कर सकती। अब ऐसे काफी कानून बनाने की जरूरत है कि ताकि इस प्रकार की मानसिकता वाले लोगों की ऐसे घटना को अंजाम देने से पहले रूह कांप जाए।