किसानों के बारे में चिंता किसको? जातिगत जनगणना से राजनीति चमकाना ही जरूरी

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चर्चित किसान नेता राकेश टिकैत भी बिहार के किसानों के बेहतर सुविधा के लिए अलाप रहे हैं राग

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                   पत्रकार राजेश मिश्रा की कलम से 

बिहार में इन दिनों जातिगत जनगणना के प्रस्तुत आंकड़ों को लेकर घमासान मची हुई है। सभी राजनीतिक दलों के द्वारा अपने -अपने विचार व्यक्त किए जा रहे हैं।लेकिन किसानों के लिए किसी राजनीतिक दलों ने नहीं सोचा सिर्फ आज तक इन किसानो पर राजनीति ही की गई।धरती के सीना चीर कर अनाज उपजाने वाले हमारे किसानों की हालत आज भी जस के तस है।

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किसानों को जमींदार, व्यापारी, पूंजीपति, साहूकार आदि हमेशा से लुटते रहे हैं जिसके कारण उनकी आर्थिक स्थिति नहीं सुधरी। वैसे तो बहुत सारी आर्थिक और सरकारी योजनाएं आई और गई। लेकिन उसका लाभ किसानों को नहीं मिला। बल्कि व्यवस्था में भ्रष्टाचार के कारण उपर ही उपर सारी सुविधाएँ भ्रष्ट लोगों ने निगल लिया। नतीजतन आज भी भारतीय किसान की स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है। राज्य सरकार के द्वारा हालांकि किसानों को उचित दाम के लिए पैक्स के माध्यम से धान बिक्री करने के लिए फरमान जारी किए जाते हैं।लेकिन रुपए भुगतान में विलंब होने के डर से सस्ते दामों में ही किसान बिचौलियों के हाथों धान बेचने पर मजबूर हो जाते हैं। क्योंकि उन्हें तुरंत रुपए चाहिए होता है।

यही हाल और भी मामले को लेकर भी है। दिन भर खेतों में काम करने वाले किसान उनके द्वारा हरी – हरी सब्जियां उगाई जाती है और जब उनके फसले तैयार होती है। तब मंडी में उसका कोई न्यूनतम दर निर्धारित नहीं होने के कारण किसानों के द्वारा कौड़ी के भाव में ही बेच दिए जाते हैं। कभी-कभी तो हालात इतने खराब हो जाते हैं कि उनका लागत मूल्य भी नहीं निकल पाता और मंडी वाले बड़े-बड़े व्यापारी ही चांदी काटते हैं। चर्चित किसान नेता राकेश टिकैत के द्वारा भी बिहार के किसानों के हित की बात को लेकर राग अलापा जा रहा है। लेकिन अब देखना यह दिलचस्प होगा कि उनकी यह सोच राजनीति से प्रेरित या सही में सेवा और परमार्थ है।

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