राकेश कुमार,लेखक लोकराज के लोकनायक
उधर, अनुराग ठाकुर बनाम राहुल गाँधी के बीच मामला गरमा हुआ जिसे पूरा देश महसूस कर रहा है. इधर, बिस्तर पर लेटे-लेटे मेरा दिमाग भी इस मुद्दे पर कौंधिया रहा है.
…….तो भारत उस दिवस के नजदीक पहुँचने को बेताब है जब हम सभी भारतीय अपने गल्ले में जाति का ब्यौरा टांगे घूमते फिरेंगे? लेकिन मसला यहाँ आकर फँस रहा है कि जाति की गणना और व्यक्ति की जाति की पहचान भी करनी है और जाति पूछने पर भड़क भी जाना है और यह भी आरोप लगा देना है कि मुझे जाति के नाम पर गाली दी जा रही है, जैसा कि लोक सभा में अनुराग ठाकुर-राहुल गाँधी प्रकरण में हुआ.
………..तो क्या हो आगे की राह?
मेरे पास एक नव विचार(Idea) है, इस मामले में. हम 21वीं सदी में जी रहे हैं. तकनीक से चंद्रमा तक भारत आसानी से पहुँच रहा है तो क्या इस प्रगतिशील दौर में अप्रगतिशील जातीय गणना और पहचान के मुद्दे को नहीं साध सकते?
मेरी तो राय है कि सरकार राहुल गाँधी समेत विपक्ष की जातीय गणना की माँग को पूरी करे. हरेक व्यक्ति की जाति और जातीय ब्यौरों को क्यू आर कोड के शक्ल हरेक गले में टाँग कर चलना अनिवार्य किया जाए. इसके कई फायदे हैं. पहला, लोगों से एक दूसरे जाति पूछनी भी नहीं पड़ेगी और सीधे क्यू आर कोड स्कैन कर ‘जातीय विरासत’ को जानना आसान हो जाएगा. दूसरा, सरकार और सरकारी महकमें काम त्वरित और आसान हो जाएगा. क्यू आर कोड स्कैन कर सरकार यह फौरन जान सकेगी कि इस व्यक्ति के पास योजना का लाभ पहुँचा है या नहीं? अगर नहीं पहुँचा तो यह भी आसान हो जाएगा कि इसका योजना लाभ इसी के जाति-बिरादरी को कोई खा रहा है या किसी अन्य का जाति?
राजनीतिक दलों के लिए चुनाव के दौरान संपर्क करना आसान हो जाएगा क्योंकि दल के कार्यकर्ता झट से क्यू आर कोड स्कैन कर या तो वोट मांगने के लिए समय देंगे या बिना समय गंवाये आगे बढ़ जाएँगे?
जातीय क्यू आर कोड सिस्टंम लागू होने पर न राहुल गाँधी को जाति सार्वजनिक करने की चिंता रहेगी और न ही अनुराग ठाकुर का उनसे अप्रत्यक्ष तौर पर जाति पूछना प्रासंगिक रह पाएगा?
लेकिन जरा सोचिए कि राजनीति की अधोगामी मानसिकता और वोट बैंक की राजनीति क्या समाज को प्रतिगामी नहीं बना रहा है!