राजेश मिश्रा
महाभारत काल में युधिष्ठिर ने भी खेला था जुआ परिणाम जग जाहिर है
दीपावली का त्योहार आ रहा है ऐसे में कई लोग अपनी किस्मत आजमाने को लेकर जुआ खेलते हैं जो कि किसी दृष्टिकोण से जायज नहीं है। सीधे तौर पर कहे तो जुए की लत स्वीट प्वाइजन से कम नहीं है जो कि दीमक की तरह धीरे-धीरे आपको या किसी को भी खा जाता है यानी बर्बाद कर देता है और जब तक आपको इसका एहसास होगा तब तक आप पूरी तरह से लूट चुके होते हैं।
जुआ खेलने से नुकसान सिर्फ पैसों का ही नहीं होता।बल्कि इसका नकारात्मक प्रभाव स्वाभिमान, पारिवारिक, संबंध, शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। अत्यधिक पैसे जीतने की लालच में जुआ आपको न सिर्फ पूरी तरह से अपनी गिरफ्त में ले लेता है बल्कि पूरी तरह से मानसिक रूप से बीमार कर देता है। थोड़े पैसे जीतने के बाद आपको और अत्यधिक पैसे जीतने की महत्वाकांक्षा प्रबल होती जाती है।
उसकी चाहत में आप लगातार इस खेल में खुद को खपा देते है और नतीजा यह होता है कि आपकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है और फिर यहीं से हो जाती है शुरू आपकी बर्बादी की कहानी। जुए में हारने के बाद पैसे की तंगी के कारण कर्ज लेकर जुआ खेलनें की आदत बन जाती है। कभी-कभी ऐसा देखा गया है कि जमीन-जायदाद घर-मकान सब कुछ दाव पर लगा दिया जाता है। ऐसे लोगों से रिश्तेदार लोग भी दूरी बनाना शुरू कर देते हैं।
घर के परिवार किस हालत में जीते हैं वह आप खुद समझ सकते हैं। बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता समझने की बात है। महाभारत काल में युधिष्ठिर ने भी जुआ खेला था परिणाम क्या हुआ जग जाहिर है अतः समाजहित में खबरी चाचा की उनलोग से विनम्र अपील है कि किस्मत आजमाने के नाम पर जुआ खेलने से परहेज करें। यह आपकी खुशहाल जिंदगी को नर्क में धकेलनें के साथ आपके स्वाभिमान, मान मर्यादा को भी प्रभावित करता है।