धीरज शर्मा की कलम से
वर्ष 2017 कि मैट्रिक की परीक्षा मे जिले भर में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाली व वर्ष 2019 में आयोजित इंटरमीडिएट की परीक्षा में जिले भर में पांचवीं स्थान प्राप्त करने वाली कशिश ने मौजूदा समय में मातृभाषा हिन्दी की अवस्था पर गहरा दुख जताया है। उन्होंने कहा की भारत की मातृभाषा हिन्दी अपने ही घर के शिक्षा व्यवस्था प्रणाली से बाहर होती दिखाई पड़ती है। भले ही हमारी संविधान ने हमें किसी भी भाषा में शिक्षा ग्रहण करने की छूट दे रखी हो। लेकिन , शिक्षा इस कदर व्यवस्थित की जा चुकी है कि किसी भी बच्चे के माता -पिता हिन्दी माध्यम में अपने बच्चों को नहीं पढाना चाहते।
कठिनाई उन बच्चों को भी सहनी पड़ती है, जो गरीब हैं। जिनके माता- पिता अपने बच्चों को अंग्रेजी मिडियम में अच्छी राशि देकर नहीं पढा पाते। उनका दाखिला सरकारी स्कूलों में होता है, जहाँ दसवीं तक की शिक्षा हिन्दी में वो पूरी करते हैं। वहां अंग्रेजी विषय की पढ़ाई तो दूर अंग्रेज़ी विषय के अच्छे शिक्षक भी मौजूद नहीं होते। इसके बावजूद वह अपनी मेहनत के दम पर शुरूआती दौर की शिक्षा पूरी कर अपने सपनो को एक नई राह देना चाहते हैं। कशिश ने बताया कि एक निचले पायदान का बच्चा साहस एवं धैर्य रखते हुए अच्छे स्तर की परिक्षाओं की तैयारी करने में जब जुटता है तब, उसकी सबसे पहली मुलाकात ज्ञान से नहीं बल्कि अंग्रेज़ी से होती है।
जहाँ उसका धैर्य और साहस दोनों टूटने लगता है ,कितनी बार वह इस वजह से पढाई छोड़ देते हैं। क्योंकि, पढाई जाने वाली अंग्रेज़ी उनके समझ नहीं आती। अगर पढाई पूरी कर भी ली तो नौकरी के लिए होने वाले इंटरव्यू में वह खुद को औरों से कम आंकता है। क्योंकि, उन्हें अंग्रेजी बोलनी नहीं आती। जो केवल मात्र अंग्रेजी को समझता और बोलता है वो कैसा भी हो उसे टैलेंटेड माना जाता है। जबकि, यह केवल मात्र एक भाषा है।
आखिर कब तक इन गरीब बच्चों को इस तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि अगर आप हिन्दी को महत्व नहीं दे सकते तो मातृभाषा का ढोंग रचना बंद कर दीजिए या फिर सरकारी स्कूलों में भी अंग्रेज़ी भाषा में ही शिक्षा दीजिए। ताकि, उन्हें भी समान अधिकार मिले और उनका सपना ना टूटे । कशिश कि मानें तो मौजूदा समय में अंग्रेजी प्राथमिक और हिन्दी द्वितीयक भाषा बन चुकी है। अंग्रेज जा चुके हैं परन्तु, हम गुलामी अब भी कर रहे। कशिश ने कहा कि वे किसी भाषा विशेष के खिलाफ नहीं हैं, परंतु अपने ही देश में हिन्दी भाषा के साथ -साथ उन गरीब बच्चों के ऊपर हो रहे कटाक्ष उनसे बर्दास्त नहीं होते।