पत्रकार राजेश मिश्रा की कलम से
विजयादशमी के दिन अहंकारी रावण पूरे देश में धू-धू कर जल उठा और पूरे समाज को यह संदेश दे गया कि गलत काम का अंजाम भुगतना ही पड़ता है। चाहे वह किसी व्यक्ति के द्वारा ही क्यों न किया गया हो आज भी हमारे समाज में मन के भीतर अहंकार भ्रष्टाचार, बेईमानी,जैसे रावण व्याप्त है।
इसके साथ ही इसे भी जला डालने की जरूरत है।तभी एक स्वच्छ समाज का निर्माण किया जा सकता है। यह वही भारत देश है जहाँ दहेज के लिए बेटियों को मार दिया जाता है। बेटे की चाहत में बेटियों को कोख में ही नष्ट कर दिया जाता है,वृद्ध मां-बाप को अनाथालय जाकर छोड़ दिया जाता है।जमीन के लिए अपने सहोदर भाईयों के बीच खूनी संघर्ष किया जाता है।
इसे तो लोगों के मन के अहंकारी रावण ही कहां जा सकता है। रावण दहन के दौरान उपस्थित लोगों के जयकारे सुनकर ऐसा प्रतीत होने लगता है कि अब हमारे समाज से रावण का पूरी तरह से अंत हो गया लेकिन ऐसा हो नहीं पता और पुनः लोग फिर उसी दुनिया में लिप्त हो जाते हैं। उदाहरण के तौर पर माने तो जिस प्रकार किसी व्यक्ति के दाह संस्कार के दौरान शमशान घाट पर पहुंचे लोगों के द्वारा आपस में चर्चाएं शुरू हो जाती है कि एक न एक दिन सभी को यहीं पर आना है। यह सब बस दो घंटे के लिए ही लगता है संसार में कोई किसी का नहीं है। फिर वहां लौटनें के उपरांत व्यक्ति भूल जाता है।
और फिर वही दुनिया में छल, कपट,बेईमानी, रिश्वतखोरी में सक्रिय हो जाता है। इसे मन के भीतर रावण ही विराजमान कहेंगे, राजनीतिक में चंद वोटो के लिए किसी भी धर्म, मजहब पर विवादित टिप्पणी करना अहंकारी रावण से कम नहीं है। बस इसे जलाने की जरूरत है तभी हमरा समाज पूरी तरह से रावण मुक्त होगा।