ज्ञानेंद्र मोहन खरे
लघु कथा। लंबी सीटी बजी और स्कूल की छुट्टी हो गयी। अनुज ने अपनी कॉपी किताब समेटी और बस्ता कंधे पर लटका बस की तरफ़ चल पड़ा। सांवला सलोना मासूम अनुज चौथी कक्षा का विद्यार्थी था। नूडल खाने और कार्टून देखने का शौक़ीन अनुज संवेदनशील बच्चा था। पढ़ाई में अपेक्षित सफलता नहीं मिलने से अनुज बहुत परेशान था। मेहनत में उसने कोई कसर नहीं छोड़ी थी पर उसे रिंकू की तरह परिणाम नहीं मिलते थे।
रिंकू पड़ोसी गुप्ता आंटी का बेटा था और उसका सहपाठी। वैसे तो गुप्ता आंटी उसे बहुत प्यार करती थी। पर पढ़ाई का ज़िक्र होने से रिंकू को बेहतर बताने लगती। उसकी पढ़ाई के बारे में मम्मी पापा से ज़्यादा गुप्ता आंटी नुक़्ता चीनी करती और हर समय उसे नसीहत देती रहती। अनुज को गुप्ता आंटी का यह व्यवहार बिल्कुल नहीं भाता था। इसी वजह से वो आंटी से बात करने में कतराता था।
कल अर्धवार्षिक परीक्षा का परिणाम आने वाला था और अनुज को परिणाम से ज़्यादा गुप्ता आंटी की टीका टिप्पणी से चिंता थी। उसे मालूम था कि उसके नंबर रिंकू से कम आएँगे। वह गुमसुम बैठा था।
खाना खाले अनुज – माँ ने पुकारा
भूख नहीं है माँ- अनुज ने जवाब दिया
थोड़ा सा गाजर का हलुआ खाले, तेरी पसंद का बनाया है – माँ की आवाज़ आई। इससे पहले अनुज कुछ बोलता माँ कटोरी में हलुआ लेकर आ गयी और उसे खिलाने लगी।
अच्छा परिणाम नहीं आने का डर अनुज के चेहरे पर साफ़ नज़र आ रहा था। उसकी तनावपूर्ण स्थिति देख माँ ने समझाया अगर नंबर अच्छे भी नहीं आये तो क्या हुआ? अभी फाइनल परीक्षा तो बची है। परिणाम सुधार लेना। छोटी बातों के लिए कोई खाना बंद थोड़ी करता है। अनुज की आँखें डबडबाई हुई थी और गाला रूँधा था। उसने चुपचाप माँ के आँचल में सिर छुपा लिया।
अनुज की आशंका के अनुरूप उसके ७० प्रतिशत नंबर आये वही रिंकु ने ९० प्रतिशत नंबर के साथ कक्षा में द्वितीय स्थान प्राप्त किया था। अब अनुज अत्यधिक मानसिक दबाव में था। बोझिल कदमों से अनुज घर में दाखिल हुआ। गुप्ता आंटी घर की बैठक कमरे में मौजूद थी और रिंकू की सफलता का गुणगान कर रही थी। अनुज को देखते ही नसीहत देने लगी कि कड़ी मेहनत करो और पढ़ाई कैसे करते है रिंकू से सीखो।
लो लड्डू खाओ कहते हुए आंटी ने लड्डू उसके हाथ में थमा दिया। अनुज निरुत्तर था उसे रोना आ रहा था। । उसे गुप्ता आंटी की नसीहत काँटे की तरह चुभ रही थी। उसने हामी में सिर हिलाया और अंदर चला गया। उसकी निगाहें पापा को ढूढ़ रही थी। पापा को पूजा में व्यस्त थे। शायद उसके अच्छे रिज़ल्ट के लिए प्रार्थना कर रहे थे। अनुज ने चुपचाप प्रोग्रेस कार्ड उनके पास रख दिया और बाथरूम की तरफ़ चला गया। हाथ मुँह धोने के बावजूद अनुज असहज था। उसे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था।
कैसा है बेटा, रिज़ल्ट कैसा आया – पापा ने पूछा।
अच्छा नहीं है पापा कह अनुज पापा से लिपट गया और ज़ोर से रोने लगा।
अरे इतना क्यों रो रहा? फेल तो हुआ नहीं ? हा नंबर कुछ कम है। पापा ने सहजता से कहा।
अनुज ने हकलाते हुए कहा केवल सत्तर प्रतिशत आये है। और कक्षा में फिसड्डियों की सूची में हूँ। रिकू के नब्बे प्रतिशत आये है-कक्षा में सेकंड है
अच्छा तो ये बात है-पापा ने उसके माथे को चूमते हुए कहा।
पापा मुस्कराये और बोले तेरा रिज़ल्ट तो ज़्यादा बेहतर है क्योंकि तेरे पास सुधार के ज़्यादा अवसर है।
वो कैसे – अनुज ने पूछा
तेरे नंबर जो कम है इसलिए। भगवान सभी को बराबर ऊर्जा और क्षमता देता है। कोई जल्दी उसका इस्तेमाल करता है जैसे की रिकू ने और कोई देरी से जैसे कि मेरा हीरो अनुज बेटा और पापा ने प्यार से उसे थपकी दी। आज रिंकू बुलंदियों पर है पर जल्दी ही तुम होगे। जैसे की हर रात के बाद सवेरा होता है वैसे ही हर असफलता के आगे सफलता होती है। चलो आज की इस ख़ुशी में कार्टून देखते हुए नूडल खाते है।
अनुज स्वयं को काफ़ी हल्का महसूस कर रहा था। पापा की बातों ने उसमे अजीब सी ऊर्जा और जोश का संचार कर दिया था। अब वह सकारात्मक सोच के साथ दोगुने उत्साह से अपनी क्षमता अनुसार पढ़ाई करने में जुट गया। उसे यक़ीन हो गया था कि सफलता हासिल करने के सारे गुण उसमे निहित है बस सतत प्रयास की ज़रूरत है।
अब उसे वार्षिक परीक्षा का बेसब्री से इंतज़ार था।