राजेश मिश्रा
बिहार में इन दोनों जोड़-तोड़कर सत्ता पर बने रहने की राजनीतिक पार्टियों की कयामत तेज हो गई है। जिसमें प्रमुख दलों ने अपनी ताकते झोंक रखी है लेकिन सीधी तौर पर कहे तो लोकतंत्र के अस्थिरता घातक है।
इसमें सरकारी धन का दुरुपयोग भी किया जाता है। जबकि जनता के द्वारा 5 वर्षों के लिए सरकार चुनी जाती है। लेकिन हालात किसी प्रकार से उत्पन्न हो रहे हैं यह किसी से छुपी हुई नहीं है।राजनेताओं के लिए सत्ता का लोभ ही उनका एकमात्र लक्ष्य हो जाता है।
यहीं से राजनीति में व्यक्तिवाद, परिवारवाद और जातिवाद का जन्म होता है। जिसमें आम नागरिक भी कम जिम्मेदार नहीं है। क्योंकि चुनाव के समय किसी भी पार्टी के स्पष्ट रूप से बहुमत न होने के कारण कई प्रमुख दलों को मिलकर सरकार बनाई जाती है।
चुनावी मौसम में जातिगत टिप्पणी, धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले शब्दों का इस प्रकार राजनीतिक दलों द्वारा प्रयोग किया जाता है कि लोग उनके भावनाओं में बह जाते हैं। और महत्वपूर्ण वोटो का बंटवारा हो जाता है।और यही प्रमुख कारण है कि किसी राजनीतिक दलों को स्पष्ट बहुमत न होने के कारण लगातार सरकार गिरने की संभावना बनी रहती है।
यहीं से सरकारी धन का दुरुपयोग होता है राजनेताओं के द्वारा अपने प्रभाव क्षेत्र को बढ़ाया जाता है। यह स्वस्थ एवं जागरूक प्रजातंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं माना जा सकता।सरकार गिरना फिर शपथ ग्रहण, बैठकों का दौर आवागमन के लिए सरकारी वाहनों का ज्यादा प्रयोग फिर नई सरकार के गठन अनावश्यक रूप से पैसे की बर्बादी होती है। जो की सीधी रूप से आम जनता पर ही प्रभावित होती है। इसमें जरा भी संदेह नहीं है।