राकेश कुमार(लेखक – लोकराज के लोकनायक)
बात 1987 के कुछेक अंतिम महीनों की है, तब कांग्रेस के विरोध में देश की राजनीति गोलबंद हो रही थी. बोफोर्स का मुद्दा जोर पकड़ चुका था. विश्वनाथ प्रताप सिंह देश की राजनीति की एक धुरी के रूप में स्थापित हो रहे थे.
कांग्रेस के विरोध में गोलबंद हो रहा विपक्ष एक नई पार्टी बनाने की कवायद में था. जनता पार्टी परिवार के बिखर चुके कुनबे एकीकृत होने की कवायद में सक्रिय थे.
इस काम को अंजाम देने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर कुछ ज्यादा ही सक्रिय थे.
एक दिन कर्पूरी जी सुबह-सुबह शरद यादव के फिरोजशाह रोड स्थित आवास पर पहुँच गये. शरद यादव देर तक सोने वाले लोगों में शामिल थे. कर्पूरी जी ने उन्हें नींद से जगाया और आवश्यक कार्य से एक जगह चलने की बात शरद जी से कही.
शरद जी आनन-फानन में तैयार हुए. दोनों शरद जी की गाड़ी से चल दिये. कर्पूरी जी ने रास्ते में बताया कि अटल बिहारी वाजपेयी जी के आवास पर चलना है.
उनदिनों अटल जी का सरकारी आवास रायसीना रोड पर हुआ करता था. कर्पूरी जी और शरद जी का अटल जी ने खूब आवभगत किया.
कर्पूरी जी ने अटल जी से कहा-एक काम है,आपसे. एक बात मेरी मानिएगा.
अटल जी ने गंभीर लहजे में कहा, भला आपका काम हो और मैं बात न मानूं ,यह कैसे संभव है? बोलिए तो सही.
“अटल जी आप कांग्रेस विरोध में बनने वाली जनता दल का अध्यक्ष बनना स्वीकार लीजिए. चौधरी देवीलाल सहित तमाम नेता जनता दल बनाने पर सहमत हो गये हैं.”
अटल जी नाटकीय अंदाज में अपनी जगह से उठे और हाथ जोड़कर कर्पूरी जी से कहा- आप महान हैं,कर्पूरी जी.
इतना कहकर अटल जी अतिथि कक्ष से अपने कमरे में चले गये. काफी समय प्रतीक्षा के बाद भी अटल जी इनदोनों के पास नहीं आये तो शरद जी ने कर्पूरी जी से कहा- यही काम था. आप पहले बता दिये होते.