अमावस्या तिथि के पिण्ड तर्पण के साथ ही पितृपक्ष समाप्त,भगवान राम एवं युधिष्ठिर के द्वारा भी तर्पण करने का है इतिहास

6 Min Read
- विज्ञापन-

औरंगाबाद।सदर प्रखंड स्थित जम्होर थानांतर्गत पुनपुन बटाने के संगम तट पर अवस्थित विष्णु धाम परिसर के पास गया पिंडदान के पूर्व प्रथम पिंडदान बेदी पर 15 दिवसीय पितृपक्ष के अमावस्या तिथि के साथ शनिवार को भक्तिमय वातावरण में संपन्न हो गया। इस मौके पर संगम तट पर हजारों श्रद्धालुओं ने अपने पूर्वजों का पिंडदान एवं तर्पण किया। उनके आत्मा के शांति के लिए विशेष प्रार्थना की। जम्होर विकास मंच के संयोजक सुरेश विद्यार्थी ने पुनपुन तीर्थ के महिमा के बारे में बताया कि संगम तट पर ही गया पिंडदान के पूर्व प्रथम पिंडदान करने की परंपरा लाखों वर्षों से चलते आ रही है।

- Advertisement -
Ad image

भगवान श्रीराम ने भी किया था यहां पिंडदान 

इस स्थल का जिक्र गरुड़ पुराण सहित नेपाल के शास्त्रों में भी वर्णित है। पुनपुन महात्मय में भी इस स्थल का जिक्र आया है। इस स्थल पर त्रेता युग में भगवान श्री राम, द्वापर में युधिष्ठिर जी महाराज ने इस स्थल पर अपने पूर्वजों का पिंडदान किया था वही कलियुग में विक्रमादित्य ने इस स्थल पर प्रदान किया था 1884 ईस्वी में भारतेंदु हरिश्चंद्र भी इस स्थल पर आए और जम्होर के साहित्यकारों को पुनपुन महात्मय लिखने की प्रेरणा दी। यह स्थल प्राकृतिक सुषमा से आच्छादित है ।इसी स्थल पर भगवान विष्णु साक्षात रूप में विराजमान है।

- Advertisement -
KhabriChacha.in

भगवान विष्णु का है वास 

पुण्य सलिला मोक्षदायिनी पुनपुन एवं बटाने नदी के प्रथम संगम तट विष्णु धाम से उत्तर वाहिनी प्रवाहित पुनपुन नदी का पावन तट गया तीर्थ के पिंडदान के प्रथम बेदी के रूप में वर्णित है। इस स्थल का जिक्र गरुड़ पुराण में भी आया है। हिंदू राष्ट्र नेपाल के शास्त्रों में वर्णित है कि इसी पावन तट पर उनके पूर्वजों के पिंडदान एवं अन्य कर्मकांड यदि संपादित हो तो उनके पूर्वज अति प्रसन्न होते हैं। यह स्थल औरंगाबाद जिले के सदर प्रखंड के जम्होर थानांतर्गत अंतर्गत एक किलोमीटर पश्चिम छोर पर अवस्थित है संगम तट पर सैकड़ों वर्ष पूर्व परमहंस खाकी बाबा ने विष्णु धाम की स्थापना कराई थी।देशाटन के क्रम में यहां रुके और उन्हें आत्म साक्षात्कार हुआ कि संगम तट पर युगो युगो से भगवान विष्णु वास करते आए हैं तो उन्होंने इसी तट पर उनकी प्रतिमा की स्थापना कराई थी जिसके दर्शन मात्र से ही भक्ति की अविरल धारा बहने लगती है।

नेपाल, भूटान से आते हैं पिंड करने के लिए पिंडदानी 

भारत के दक्षिण के राज्यों से जो तीर्थ यात्री आते हैं वे इसी स्थल पर पिंडदान का कार्य संपादित करते हैं नेपाल भूटान वर्मा एवं अन्य सनातनी परंपरा के मानने वाले लोगों का पसंदीदा स्थल एवं उनके पूर्वजों के डायरी में लिखा हुआ स्थल इसी पुनपुन के प्रथम संगम तट का उल्लेख आया है वर्षों पूर्व एक नेपाल के व्यक्ति आए तो उन्होंने अपनी डायरी में उनके पांच पीढ़ी के पूर्वज लिखकर गए थे कि जब तुम गया पिंडदान करने जाना तो प्रथम तर्पण इसी प्रथम संगम तट के उत्तर वाहिनी बहने वाली पुनपुन के तट पर ही करना। पुनपुन नदी के उत्पत्ति के संदर्भ में शास्त्रों में जिक्र किया गया है कि ब्रह्मा जी यज्ञादि के निमित्त पृथ्वी क्षेत्र पर विचरण कर रहे थे तो उनके कमंडल से गंगा का दो बूंद जल पृथ्वी पर छिटकती है तो उनके मुंह से अनायास निकलता है आदि गंगा पुनः पुनः तभी से इस नदी का नाम पुनपुन पड़ा।यह गंगा से पहले आई थी। केसर ग्राम के बगल में अवस्थित बसडीहा के प्रसिद्ध कर्मकांडी एवं विद्वान बनमाली बाबा इस नदी को पातालफोड़वा नदी के रूप में भी अक्सर जिक्र किया करते थे‌ नदी के उद्गम स्थल से लेकर फतुहा घाट तक पाताल फोड़ने वाली सोई इस नदी में अक्सर देखी जाती है।

भारतेंदु हरिश्चंद्र ने भी किया है अपनी रचनाओं में इसका उल्लेख 

इसी स्थल पर भगवान श्री राम गया पिंडदान के पूर्व पिंडदान किए थे और लौटने के क्रम में मदनपुर प्रखंड के सीता थापा में सीता मैया का हाथ का प्रतीक चिन्ह उत्कीर्ण है।पांडव जी महाराज ने भी यहां पिंडदान किया था। दो हजार साल पहले राजा विक्रमादित्य का भी इस स्थल पर पिंडदान करने का जिक्र आया है। 1884 ईस्वी में हिंदी साहित्य के महान साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र इस स्थल पर आए थे और यहां के साहित्यकारों से मिलकर पुनपुन महात्म्य की रचना में सहयोगी की भूमिका निभाई थी। ऐसे अनेक दृष्टांत हैं जिससे स्पष्ट होता है कि प्रथम संगम तट का उत्तर वाहिनी पुनपुन प्रथम बेदी के रूप में अंकित है। सैकड़ो वर्ष पूर्व सूरजमल सेठ ने एक भव्य एवं दिव्य धर्मशाला का निर्माण कराई थी।जहां पर पिंडदान करने के पश्चात तीर्थ यात्री विश्राम किया करते थे। वर्तमान में पुनपुन घाट उपेक्षा का शिकार है सिर्फ पितृ पक्ष के समय ही यहां जनप्रतिनिधियों की दृष्टि जाती है और साल भर से कोई से देखने वाला नहीं मिलता है इस स्थल का अपेक्षित विकास होना चाहिए ताकि हम सनातन परंपरा के सभी उपादानों को सही ढंग से संपादित कर सके।

Share this Article
Leave a comment

Leave a Reply

You cannot copy content of this page