*पत्रकार राजेश मिश्रा की कलम से*
अभिव्यक्ति। आज़ादी मिलने के बाद कुछ महापुरुषो ने पिछड़े और ग़रीब लोगो के विकास और सुरक्षा के लिए पढ़ाई और नौकरी मे आरक्षण के लिए ज़ोर दिया था मगर प्रारंभ से ही इस पर राजनीति की गयी राजनीतिक दलों द्वारा सत्ता प्राप्त करने के लिए इसे हथियार के तरह प्रयोग किया जिसका सबसे ज्यादा खामियाजा स्वर्ण समाज भुगत रहा है।
अभी भी समाज में सवर्ण की स्थिति ठीक नहीं है। बहुत से ऐसे बच्चे हैं। जो कि पैसे के तंगी के कारण उच्च शिक्षा ग्रहण नहीं करते उन्हें राज्य सरकार की ओर से कोई भी अनुदान नहीं दिया जाता उन्हें छात्रवृत्ति भी नहीं दिया जाता। आर्थिक स्थिति पर अगर आरक्षण दी जाए तो सभी को लाभ होगा और सभी लोगों का विकास भी होगा।
जातीय गणना के नाम पर सरकार द्वारा करोड़ों रुपए रांगे की तरह बहाए जा रहे हैं। इससे क्या होगा ऐसे तो कई लोगों का मानना है कि जिसकी ज्यादा जातिगत संख्या होगी सरकार के द्वारा विशेष रूप से उन्हें ही लाभ पहुंचाया जाएगा क्योंकि उन्हें लुभाकर सुहाने सपने दिखाकर सत्ता हासिल करेंगे।
लेकिन कुछ लोगों में दुर्भावना की सोच उत्पन्न होगी। आजादी के बाद कई तरह के नए क्षेत्रीय दलों ने अपने-अपने क्षेत्र में पकड़ मजबूत की और सबसे बड़ी दुर्भाग्य की बात यही है कि सभी ने खुले मंचों से विशेष कर अपने जाति को एक होने का आवाहन किया एवं अपने लिए समर्थन मांगा।
जो आने वाले भविष्य के लिए बहुत ही घातक है।अगर भारत देश से राजनीतिक दल प्यार करते हो तो जरूर इस पर विचार करें, मेरा मकसद किसी के मन क़ी भावनाओं को आहत करना नहीं है।
यह मेरा निजी विचार है।