बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन की अंगीभूत इकाई औरंगाबाद जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन के तत्वावधान में हिंदी दिवस पाक्षिकोत्तर कार्यक्रम के दसवें दिन आधुनिक काव्य के उन्नायक एवं गद्यात्मक काव्य को गतिशीलता प्रदान करनेवाले अध्ययनशील लेखक धनंजय जयपुरी के साहित्यिक अवदानों पर संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया।
सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह, उपाध्यक्ष डॉ सुरेंद्र प्रसाद मिश्र, संयुक्त सचिव चंदन पाठक, विनय मामूली बुद्धि, नागेंद्र केसरी के आह्वान पर संवाद करते हुए उपाध्यक्ष सुरेश विद्यार्थी ने बताया कि वर्तमान परिवेश में औरंगाबाद में हिंदी भाषा को उत्कर्ष प्रदान करने में जयपुरी जी का बहुमूल्य योगदान रहा है।
छंदोबद्ध काव्यों में गीता द्रुतविलंबित एवं सतबहिनी चालीसा इनके अप्रतिम काव्य हैं जो काफी प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके हैं। ‘कहानी अपनी- अपनी’ नामक कथा-संग्रह इनकी अद्भुत कृति है, जिसमें इन्होंने आसपास की विविध अप्रत्याशित घटनाओं को केंद्रित कर सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिदृश्यों को उजागर करने का कार्य किया है। इस कथा पुस्तक में वास्तविकता की गुंज सुनाई पड़ती है।
‘पुष्प हरसिंगार के’ नामक काव्य-पुस्तक प्रकाशनाधीन है। वर्तमान में जयपुरी जी राष्ट्रीय साहित्यिक संस्था ‘शब्दाक्षर’ के राष्ट्रीय प्रचार मंत्री तथा औरंगाबाद जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन के महामंत्री हैं।इनके तीन साल के कार्यकाल में दो दर्जन से भी अधिक पुस्तकों का लोकार्पण हो चुका है। ये नवोदित कवियों को निरंतर काव्य-रचना के लिए प्रेरित करते रहते हैं।
जयपुरी जी अबतक कई राष्ट्रीय,राजकीय एवं जिला स्तर के साहित्यिक सम्मान प्राप्त कर चुके हैं।