पत्रकार राजेश मिश्रा की कलम से
हिंदू धर्म में पौराणिक कथाओं और हिंदू मान्यता के अनुसार पूर्वजों की आत्मा की शान्ति के लिए पिंड दान करना काफी पवित्र माना जाता है।ज्ञान और मोक्ष की भूमि गया में पितृपक्ष के दौरान देश-विदेश से लाखो श्रद्धालु गया पहुंचते हैं ऐसा कहा गया है कि फल्गु नदी के तट पर विष्णुपद मंदिर के करीब और अक्षयवट के पास पिंडदान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है। लेकिन इस बार पितृपक्ष में कर्मकांड के लिए बिहार पर्यटन विभाग ने ई-पिंडदान भी व्यवस्था शुरू की है।अब लोग घर बैठे हीं देश विदेश से पितृपक्ष में अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए पिंडदान कर सकेंगे।
पर्यटन विभाग ने इसके लिए ई-पिंडदान ऐप लॉन्च की है। इस प्रकार की व्यवस्था की जानकारी मिलते ही मन बेचैन हो गया और मन में तरह-तरह के सवाल उठने लगे और क्यों ना उठे क्या अंतरात्मा इस तरह के कार्य को करने की अनुमति प्रदान करेगा।जिस बेटे के जन्म लेने पर माता-पिता,दादा-दादी एवं पूरे घर के परिवार के द्वारा खुशी व्यक्त की जाती है और मिठाइयां बाटी जाती है और इन सबों के द्वारा बच्चों को बेहतर ढंग से परवरिश की जाती है।
अपनी समर्थ के अनुसार उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिए विभिन्न प्रकार के स्कूल,कॉलेज,कोचिंग संस्थान में भेजे जाते हैं। इस उम्मीद के साथ की वृद्धावस्था में हम सबों का सहारा बनेगा और फिर बच्चे बड़े होकर डॉक्टर इंजीनियर एवं विभिन्न प्रकार के बड़े पदों पर नौकरी प्राप्त कर देश,विदेश में जाकर अपनी सेवाएं प्रदान करते हैं उस समय तक माता-पिता अपने आप को काफी गर्व महसूस करते हैं धीरे-धीरे समय निकलता चला जाता है।
एक समय ऐसा भी आता है जब उम्र के अंतिम दहलीज पर पहुंच जाते हैं उस वक्त उन्हें लगता है कि उनका बेटा विदेश में न रहकर उनके पास होता वें अपने आप को अकेलापन महसूस करने लगते हैं ऐसा इसलिए की शादी विवाह होने के बाद लोग अपनी छोटे परिवार में ही संकुचित होते जा रहे हैं इसके अलावा सभी प्रकार के रिश्ते को इन सबों के द्वारा दरकिनार किया जा रहा है और यह रिश्ते ससुराल तक हीं सिमट जा रही है। जो की बेहद हीं निराशाजनक है।
हां जरूर कुछ रिश्ते ऐसे भी हैं जो की इमानदारी पूर्वक निभाए जाते हैं।लेकिन ज्यादातर रिश्ते आधुनिक परिपेक्ष में व्यस्तता की आंधी में दिन प्रतिदिन पीछे छूटते होते चले जा रहे हैं किसी के पास जरा भी समय नहीं है,हनीमून,सैर सपाटे के लिए खूब समय है और आंखों से ओझल हो रहे पुराने रिश्ते को निभाने के लिए समय नहीं है। अब तो राज्य सरकार के द्वारा भी उन लोगों के द्वारा सुविधा प्रदान की जा रही है जो कि देश-विदेश में जाकर कार्य करते हैं और उन्हें समय नहीं है वें पितरों के मुक्ति के लिए किए जाने वाले पिंडदान अब वहीं से ई-पिंडदान कर सकेंगे।
ध्यान रहे यही संस्कार आपके बच्चे भी सीखेंगे। हो सकता है आगे चलकर इसमें भी वे सब कुछ कटौती कर दें। ऐसी स्थिति में वहीं काहवा चरितार्थ होगी कि बोया पेड़ बाबुल का तो आम कहां से पाएंगे। खबरी चाचा ऐसे बेटों से जो विदेश रहकर ई – पिंडदान की इच्छा रखते हैं उनसे विनम्र अपील करता है कि अपने संस्कार से खिलवाड़ न कर व्यस्ततम समय निकालकर अपने पूर्वजों को उचित सम्मान दें। ई-पिंडदान से कर्मकांड का सहारा लेने से परहेज करें।