अवैध कब्जे की परिणीति दुखद ही होती है,इंसान सबक ले

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राकेश कुमार(लेखक – लोकराज के लोकनायक)

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किसी की संपत्ति के अवैध कब्जे की अंतिम परिणति यही होती है. आप भी देखिये.बात सन् 1975 की है. देश में 25 जून की रात्रि को इमरजेंसी लागू कर दिया गया है. भारत के नागरिकों के मूल अधिकार को छिन लिया गया था.

अनुच्छेद-21 के तहत प्रदत्त ‘प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता’ (Fundamental right to life) को भी छिन लिया गया था, तो संपत्ति के अधिकार के कानून को कौन पूछे?

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औरंगाबाद शहर के हृदय में पोस्ट ऑफिस के ठीक सामने स्थित लगभग एक बीघे की भूमि बरियावाँ के एक राजपूत परिवार से सरकार ने D.I.R कानून के तहत जब्त कर ली थी.बरियावां का उक्त परिवार मेरे दादा जी स्व. दीपनारायण पाण्डे़य जी का मुरीद था क्योंकि उस गाँव के लोगों का निकास मेरे गाँव से था, तब पक्की सड़क नहीं हुआ करता था और मेरी कृषि भूमि का विस्तार बरियावां के सीमान तक था. मेरे दादा जी कानूनी मामले के प्रख्यात जानकार भी हुआ करते थे.

जानकारी मिली है कि 49-50 सालों की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद बरियावां के उक्त परिवार को जीत मिली है और उक्त जमीन को अवैध अतिक्रमण से मुक्ति दिलाकर उन्हें प्रशासन के द्वारा हस्तगत कराया जा रहा है.

यह सबक है उन सभी अवैध कब्जाधारियों के लिए जो दूसरों की जमीन पर जमें हुए होते हैं. यह नज़ीर है उन अधिकारियों के लिए जो किसी के पास वैध कागजात के बावजूद उसे परेशान करने की नियत से अवैध घोषित करने की ताक में लगे रहते हैं.

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